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इन कुर्सियों में योगिनियों का निवास होता है , जो भी इस पर एक बार बैठ जाए फिर मरने तक मोह ऐसा की छूटता ही नहीं।सटीक और सार्थकता के साथ , लाज़वाब आकांक्षा बन पड़ी है आपकी। बहुत -बहुत बधाई आपको आदरणीय डॉ विजय शंकर जी। :))))
aअ० विजय्र सर , क्या बात है , बहुत बढिया . आज के नेताओं पर करारार व्यंग्य , सादर .
जनाब विजय शंकर जी , दिल को छू लेने वाली अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई
वाह आदरणीय सर गजब का सृजन है, अंतिम पंक्ति बहुत मारक है| कृपया सादर बधाई स्वीकार करें|
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