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हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी! बहुत अच्छी और सारगर्भित प्रस्तुति!
हार्दिक आभार आपका श्री तेजवीर सिंह जी | सादर
बहुत बहुत आभार आपका श्री विनय कुमार सिंह जी | सादर
गुरु-घंटाल अनन्त , उनकी कथा अनन्ता।
भीतर से खोखले मगर महत्त्वाकांक्षा का चश्मा लगा बैठे स्वयंभू मठाधीशों को सरे -बाजार घसीटा आपने।
जरूरी था ,यह इलाज़। बहुत से मंचों की सत्य-कथा भी यही है।
हार्दिक आभार आपका श्री प्रदीप नील जी | सादर
पुराना दर्द --
आज फिर से पुराना दर्द उभर आया था , किसी तरह से प्रयास करके पास के मेज पर रखी दवा खायी और बिस्तर पर लेट गया | किनारे वाली अलमारी में रखा फोटो धूल खाकर काफी जर्द हो गया था लेकिन फिर भी उसे देखकर एक मुस्कान खिंच आती थी उसके चेहरे पर | ये लगभग बीस साल पहले की फोटो थी जब बेटा विदेश जा रहा था | उसी के पीछे उसकी और पत्नी की भी तस्वीर भी रखी थी जिसमे दोनों ऐसे बैठे थे जैसे जबरदस्ती बैठाये गए हों |
हां , जबरदस्ती ही तो बैठाये गए थे दोनों क्यूंकि उसने कभी भी पत्नी को स्वीकार नहीं किया था | न तो वो उसकी अपनी कल्पना के अनुरूप थी और न हीं माँ पिता की अवहेलना कर सकता था | पर एकलौते पुत्र पर सब कुछ लगा कर जैसे वो कुछ साबित करना चाहता था | पत्नी ने कई बार दबी जबान में कहा भी कि एकलौता है तो क्या , उसकी हर जिद्द मत पूरा करो , लेकिन जितना ही वो कहती , उतना ही वो उसको खुली छूट देता गया | बेटा आगे बढ़ता गया , पत्नी की जिंदगी पीछे छूटती गयी , एक समय आया जब बेटा बाहर किसी और देश निकला और पत्नी ने भी किसी और दुनिया में जाने की राह पकड़ ली | फिर जैसे जैसे बेटे से बातचीत घटने लगी , वैसे वैसे उसे पत्नी की उपस्थिति महसूस होने लगी | लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और उसने अपनी अलग दुनियां में जाने की तैयारी कर ली थी | पत्नी के अंतिम संस्कार में बेटा आया तो जरूर था लेकिन उसके हाव भाव ने जाहिर कर दिया था कि अब यहाँ उसका कुछ नहीं रहा | उसकी बात करने की हर कोशिश को नकारता हुआ बेटा उसकी बात काटकर बाहर निकल जाता | जल्दी जल्दी सब निपटाकर बेटा निकल गया और छोड़ गया उसके लिए वो सूनापन जिसे कभी उसने पत्नी के लिए रख छोड़ा था |
एकबार फिर वो उठा , अपनी और पत्नी की तस्वीर उठाकर उसकी धूल साफ़ की और धीरे से उसे आगे रख दिया | अब अपने सीने पर पड़े बोझ से उसे थोड़ी राहत महसूस होने लगी |
मौलिक एवम अप्रकाशित
किसी के जाने के बाद ही उसकी अहमियत होती है, आपकी रचना यह सन्देश देने में पूर्ण सफल है| आदरणीय विनय कुमार जी सर, कृपया सादर बधाई स्वीकार करें, इस भावपूर्ण - संदेशप्रद रचना के सृजन हेतु|
बहुत बहुत आभार आपका आ चंद्रेश जी
बहुत ही महीन क्षण को उभार दिया है भाई विनय कुमार सिंह जी, इसे ही कहते हैं किसी बड़े परिदृश्य से किसी बारीक और छोटी सी चीज़ को मैग्नीफाई करना - वाह !!!I टूट चुकी उम्मीदों के स्याह साये से बचने के लिए अपनी पुरानी फोटो से धूल साफ़ करने की बात सीधे दिल में उतर गई I इस बढ़िया किन्तु लेट एंट्री हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें I
बहुत बहुत आभार आपका आ योगराज सर जी, थोड़ी लेट एंट्री हुई कुछ व्यस्तताओं के चलते लेकिन अगर प्रस्तुति ने दिल को छुआ तो लेखन सफल हुआ | इसी तरह हौसला अफ़ज़ाई और मार्गदर्शन मिलता रहे , नव वर्ष में भी यही आकांक्षा है हमारी
आदरणीय विनय कुमार सिंह जी आप ने एक दर्द की पूरी दास्ताँ कह दी. कम शब्दों में बहुत ज्यादा व्यक्त करने के लिए बधाई आदरणीय.
बहुत बहुत आभार आपका आ ओम प्रकाश जी
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