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बहुत बहुत आभार आपका आ सतविंदर कुमार जी
का बरखा जब कृषि सुखानी... बहुत अच्छी प्रस्तुति आ० विनय सर...
बहुत बहुत आभार आपका आ सीमा सिंह जी
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी! बहुत गंभीर और सारगर्भित प्रस्तुति!मनुष्य के कर्म सदैव उसके इर्द गिर्द घूमते रहते हैं!उसका हर तरह का व्यबहार लौट कर उसी के पास आता है!अच्छा हो या बुरा!प्यार हो या तिरस्कार!बेहतरीन लघुकथा!
बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी
बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद जी , हम सब साथ साथ ही सीख़ रहे हैं एक दूसरे से
तिरस्कृत पत्नी का मर्म , गलत परवरिश का नतीजा , बेटे के लिए माँ का ही सर्वोपरि होना ..........अहंकारी पुरुषदम्भ आखिर निढाल हुआ। बहुत ही मार्मिकता लिए सघन भावों का निर्वाह करती हुई चिंतन को वृहद आयाम देती एक बेहतरीन लघुकथा की प्रस्तुति हुई है। बधाई स्वीकार करें आदरणीय विनय सर जी।
बहुत बहुत आभार आपका आ कान्ता रॉय जी इस समीक्षा के लिए
बहुत बहुत आभार आपका आ नीता कसार जी इस समीक्षा के लिए
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