परम आत्मीय स्वजन
अप्रैल माह का मिसरा -ए- तरह मुग़ल काल के अंतिम दौर के शायर मोमिन खान 'मोमिन' की गज़ल से लिया गया है| मोमिन इश्क और मुहब्बत के शायर थे| उनकी ग़ज़लों का माधुर्य और नाज़ुकी उनके अशआर पढ़ने से सहज ही महसूस की जा सकती है| कहते हैं उनके एक शेर पर ग़ालिब ने अपना पूरा दीवान उनके नाम करने की घोषणा कर दी थी| इस बार का तरही मुशायरा ऐसे अज़ीम शायर को ओ बी ओ की तरफ से श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित है| मिसरा है:-
"तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं "
बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ
(इसी बह्र पर ओ बी लाइव तरही मुशायरा -१९ भी आयोजित हो चुका है जिसे य...
ते/२/रा/२/ही/१ जी/२/न/१/चा/२/हे/१ तो/१/बा/२/तें/२/ह/१ जा/२/र/१/हैं/२
(तख्तीय करते समय जहाँ हर्फ़ गिराकर पढ़े गए हैं उसे लाल रंग से दर्शाया गया है)
रदीफ: हैं
काफिया: आर (हज़ार, बेकरार, खाकसार, इन्तिज़ार, करार आदि)
मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 अप्रैल 2012 दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 30 अप्रैल 2012 दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २१ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ
( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 अप्रैल 2012 दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
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बहुत ख़ूब अरविन्द जी! बहुत ही अच्छी प्रस्तुति..
बहुत सुन्दर प्रयास भाई अरविन्द कुमार जी.
बहुत खूब आदरणीय Arvind कुमार जी
बढ़िया ....
अरविन्द कुमार भाई...आपकी ग़ज़ल में एक जोश, और हताशा दोनों शुमार हैं....जो अच्छा तालमेल है....आखिरी के दो शेर तो जैसे एक पूरी प्रेम कथा कह गए...
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अरविन्द जी, भाव अच्छे है, इस प्रयास पर बधाई आपको |
समस्त सम्माननीय मित्रों/गुरुजनों को सादर नमन कर तरही पर यह प्रयास प्रस्तुत है....
हम लाख चाहे सोच लें हम होशियार हैं।
लेकिन हवाओं में भी बड़े तेज धार हैं।
दिल में सँजो रखे थे जो यादों के पैरहन,
देखा जो आज झांक सभी तार तार हैं।
हर सांस ये ही बात हमेशा सिखा गयी ,
सय्याद वक़्त, हम हैं परिंदे, शिकार हैं।
चारागरी है दर्द की मुमकिन सही मगर,
तेरा ही जी न चाहे तो बातें हजार हैं।
खामोश यां हबीब हैं लफ्जों के काफिले,
आँखों के आसमान में रिमझिम गुबार हैं।
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- संजय मिश्रा ‘हबीब’
आदरणीय संजय जी, आपको पुनः इस मंच पर देखकर मन बेहद प्रसन्न है.. प्रस्तुत ग़ज़ल का एक एक शेर न सिर्फ गेयता की दृष्टि से बल्कि भाव और कहन की दृष्टि से भी आला दर्जे का है... बधाई स्वीकार करें इस सुन्दर प्रस्तुति पर
हर सांस ये ही बात हमेशा सिखा गयी ,
सय्याद वक़्त, हम हैं परिंदे, शिकार हैं।
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अति सुन्दर शेअर, पूरी ग़ज़ल ही उच्च स्तरीय है. हार्दिक बधाई आदरणीय Sanjay Mishra 'Habib' जी
आपको अपने बीच पाकर सचमुच बड़ा अच्छा लग रहा है हबीब साहेब ........ ग़ज़ल के शे ' र नगीने की तरह जड़े हुए हैं ........ बहुत -बहुत बधाई
संजय जी सबसे पहले तो आपका पुनरागमन पर स्वागत है आप से एक महीने पहले मैं भी इसी दौर से गुजर रही थी ....जिंदगी के सफ़र चलते रहते हैं .....
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