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//नहीं भूला वो याराना दीवाना जो भी होता था
जला बैठा था खुद ही को जो परवाना भी होता था// यहाँ शायद शब्दों का क्रम टंकण की त्रुटी की वजह से गड़बड़ हो गया है - मतला सुन्दर है !
//कभी ना तुम झुकाना सर झुकाना गर तो उस के दर
जो परवा की ज़माने की तो मर जाना भी होता था// भाई जी, दोनों मिसरों में समन्वय नहीं है !
//शिकम की आग में जलकर बना कुंदन कलेजा ये
इन्हीं बच्चों की खातिर खुद से लड़ जाना भी होता था // क्या कहने हैं इस शेअर के - वाह वाह वाह !
//हवादिस की फ़सीलें तब दिलों के बीच थीं कायम
मगर फिर भी मेरे मालिक ये निपटाना भी होता था // बहुत सुन्दर !
//नहीं है बदनसीबी अब नसीबी दर पे दस्तक दे
जरा सी बात पर तेरा वो अड़ जाना भी होता था // सुन्दर !
//वो मैखाना अभी भी है तेरे आने से बिस्मिल्ला
पिलाई थी जिन आँखों से वो पैमाना भी होता था// सुन्दर !
//मोहब्बत है वही अब भी उसे बख्शा हवाओं नें
कभी रोशन चरागों से जो बुतखाना भी होता था // क्या बात है - बहुत खूब !
//वो अफसाने सभी कायम अभी भी याद हैं लेकिन
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था// वाह वाह - सुन्दर गिरह !
//कभी ना तुम झुकाना सर झुकाना गर तो उस के दर
जो उस दर ना झुकायें सर तो जुर्माना भी होता था//
आपके सुझाव के अनुसार इस शेर के मिसरों में समन्वय करने का प्रयास किया है......
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