Tags:
Replies are closed for this discussion.
ग़ज़ल के भाव बेहतर हैं रची है आपने दिल से
बहर में बाँधकर इसको जो चमकाना भी होता था
बहुत-बहुत बधाई मित्र........इस भाव-प्रधान गज़ल के लिए ...........:))
गजल-कई सदियों से जीना और मरना भी होता था।
हरिक आबाद घर में इक वीराना भी होता था।।
अब जाके मेरे दिल को सुकूॅं औ करार आया।
तुम बिन दिले-बेजार को समझाना भी होता था।।
दिन तो जैसे-तैसे गुजार लेते थे हम लेकिन।
शब में तन्हाॅं चश्में-अश्क बहाना भी होता था।।
भूले ना भूलाए आपकी गीतों-गजलों के बोल ।
आठों पहर इनके गुण गिनाना भी होता था ।।
तुम जहां हो रहो मगर हमारी इन आॅंखों में काजल।
माथे पे बिंदीयां चंदन का क्रम ेजताना भी होता था।।
नेमीचन्द पूनियां चंदन
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |