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आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी एवं OBO परिवार के सभी मित्रों
प्रसन्नता है कि "OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-११ के माध्यम से एक बार फिर आपके मध्य आ पाया हूं ।
लीजिए मेरी ग़ज़ल प्रस्तुत है …
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मां से भी धंधा कराया है
ख़ुदा जाने कॅ बंदों ने किया क्या ; क्या कराया है
तिजारत की वफ़ा की , मज़हबी सौदा कराया है
बड़ी साज़िश थी ; पर्दा डालिए मत सच पे ये कह कर-
’ज़रा-सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है’
ज़रा तारीख़ के पन्ने पलट कर पूछिए दिल से
कॅ किसने नामे-मज़हब पर यहां दंगा कराया है
वो जब हिस्से का अपने ले चुका , फिर पैंतरा बदला
मेरे हिस्से से उसने फिर नया टुकड़ा कराया है
वफ़ा इंसानियत ग़ैरत भला उस ख़ूं में क्या होगी
बहन-बेटी से जिस बेशर्म ने मुजरा कराया है
अरे ओ दुश्मनों इंसानियत के ! डूब’ मर जाओ
मिला जिससे जनम उस मां से भी धंधा कराया है
जिसे सच नागवारा हो , कोई कर के भी क्या कर ले
हज़ारों बार आगे उसके आईना कराया है
ज़ुबां राजेन्द्र की लगने को सबको सख़्त लगती है
वही जाने कॅ ठंडा किस तरह लावा कराया है
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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पहले यह ग़ज़ल मेरे ब्लॉग पर ही लगाने की सोच रहा था । फिर सोचा इस बहाने यहां उपस्थिति दर्ज़ तो करवा सकूंगा ।
आगे ही बहुत ग़ैरहाज़िरी चल रही है :)
सभी गुणीजनों की प्रतिक्रिया जान कर प्रसन्नता होगी ।
सादर शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
ख़ुदा जाने कॅ बंदों ने किया क्या ; क्या कराया है
तिजारत की वफ़ा की , मज़हबी सौदा कराया है
waah whh maja aa gaya sir... bahut khub... puri rachna hi bahut sundar hai badhai ho
# पल्लव पंचोली जी ,
आभारी हूं …
वफ़ा इंसानियत ग़ैरत भला उस ख़ूं में क्या होगी,
बहन बेटी से जिस बेशर्म ने मुजरा कराया है।
ख़ूब बहुत ख़ूब स्वर्णकारजी बधाई।
# डॉक्टर साहब संजय दानी जी ,
यहां तो आपने धन्य किया मुझे …
मैं तो शस्वरंपर भी आपका बहुत इंतज़ार करता रहता हूं ।
बहुत बहुत आभारी हूं ।
//ख़ुदा जाने कॅ बंदों ने किया क्या ; क्या कराया है
तिजारत की वफ़ा की , मज़हबी सौदा कराया है//
बहुत खूबसूरत मतले से आगाज़ किया है ग़ज़ल का - वाह !
//बड़ी साज़िश थी ; पर्दा डालिए मत सच पे ये कह कर-
’ज़रा-सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है’//
क्या कहने है राजेन्द्र साहिब - कमाल की गिरह बांधी है !
//ज़रा तारीख़ के पन्ने पलट कर पूछिए दिल से
कॅ किसने नामे-मज़हब पर यहां दंगा कराया है//
बहुत खूब !
//वो जब हिस्से का अपने ले चुका , फिर पैंतरा बदला
मेरे हिस्से से उसने फिर नया टुकड़ा कराया है//
वाह वाह वाह - क्या उम्दा ख्याल है !
//वफ़ा इंसानियत ग़ैरत भला उस ख़ूं में क्या होगी
बहन-बेटी से जिस बेशर्म ने मुजरा कराया है//
कमाल का शे'र है यह भी ! इसे हासिल-ए-ग़ज़ल कहना गलत न होगा !
//अरे ओ दुश्मनों इंसानियत के ! डूब’ मर जाओ
मिला जिससे जनम उस मां से भी धंधा कराया है//
दिन-ब-दिन गिरती हुई इंसानी क़द्रों कीमतों पर बड़ा करार प्रहार करता है ये शे'र - वाह वह वह ! एक छोटी सी सादर गुजारिश, पहले मिसरे के "डूब मर" में "डूब" का आखरी साकिन व्यंजन "ब" और "मर" का पहला साकिन ब्यंजन "म" हो जाने से "सकता" की तर्ज़ का "ऐब-ए-तनाफुर" पैदा हो रहा है और "डूब मर" का उच्चारण "डूम्मर" की हो गया है ! इस पर बराए-करम ज़रा नजर-ए-सानी कर लें !
//जिसे सच नागवारा हो , कोई कर के भी क्या कर ले
हज़ारों बार आगे उसके आईना कराया है//
आहा हा हा हा हा - बहुत सुन्दर शेअर !
//ज़ुबां राजेन्द्र की लगने को सबको सख़्त लगती है
वही जाने कॅ ठंडा किस तरह लावा कराया है//
मकता भी बहुत खूब कहा है राजेन्द्र जी ! कोई कुछ भी कहे मगर मेरी दुआ है कि आपके अन्दर का लावा यूँ ही सलामत रहे ! इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मेरी दिली दाद कबूल फरमाएं !
योगराज जी, आप कुछ ज्यादह ही गहरे चले गये "ऐब-ए-तनाफुर" को लेकर। वस्तुत: ये वो बारीक बातें हैं जो उस्ताद लोग ही पकड़ पाते हैं।
मात्र उदाहरण के लिये कह रहा हूँ कि 'मिला जिससे जनम उस मां से भी धंधा कराया है' में भी 'जिससे' पढ़ने में 'जिस्से' हो जायेगा लेकिन उस के कारण वज़्न में अंतर नहीं आ रहा है इसलिये आपत्तिजनक नहीं रह जाता है जबकि 'डूब मर' 'डूम्मर' हो जाने से वज़्न में अंतर आ रहा है इसलिये आपत्तिजनक हो जाता है।
राजेन्द्र भाई अच्छे और परिपक्व शायर हैं, मगर चूक तो किसी से भी हो सकती है।
आप सही हैं, मेरा भी आशय यही है कि हमें ग़ज़ल में कहन की आत्मा पर केन्द्रित रहना चाहिये, शिल्प की चूक तो आज के युग के अधिकॉंश नामी शायरों के कलाम में भी कहीं न कहीं मिल ही जाती है। बहुतों से चूक इसलिये होती है कि ग़ज़ल विषय का अध्ययन किये बिना ग़ज़ल कहते हैं तो उन दोषों का ज्ञान ही नहीं होता जो उस्ताद लोग पकड़ते हैं। मैं तो स्वयं ही ग़ज़ल को पूरी तरह समझै बिना ग़ज़ल कह रहा हूँ। जब कोई उस्ताद इंगित करता है तो बात समझ में आ जाती है, आगे ध्यान रखने की कोशिश रहती है।
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