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सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन |

एक नहीं दो नहीं छह-छह ऋतुओं वाले इस देश की प्रकृति का सौंदर्य है ही सबसे निराला| शायद ही कोई साहित्यकार रहा होगा जिसकी कलम ने प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य पर कुछ लिखा न हो | तो आइए इस बार के महा इवेंट में हम लोग ऋतुराज वसंत के स्वागत में अपनी अपनी रचनाओं के माध्यम से बतियाते हैं 'प्रकृति सौंदर्य' के बारे में |

"OBO लाइव महा इवेंट" अंक- ४
विषय :- प्राकृतिक सौंदर्य
आयोजन की अवधि:- दिनांक १ फ़रवरी मंगलवार से ३ फ़रवरी गुरुवार तक


विधाएँ

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. गीत-नवगीत
  4. ग़ज़ल
  5. हाइकु
  6. व्यंग्य लेख
  7. मुक्तक
  8. छंद [दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका वग़ैरह] इत्यादि

विशेष:-
अब तक तो आप सभी को सब कुछ पता चल ही चुका है ओबिओ लाइव महा इवेंट के बारे में | बस एक छोटी सी प्रार्थना है, अन्यथा न लें | आप खुद ही सोचिए यदि हमारे सामने १० रचनाएँ हों तो हम में से कितने लोग उन में से कितनी रचनाएँ पढ़ पाते हैं? और उस से भी ज़्यादा ज़रूरी बात ये कि उन रचनाओं के साथ हम कितना न्याय कर पाते हैं? तो, सभी प्रस्तुतिकर्त्तओं से सविनय निवेदन है कि ओबिओ मंच के लाइव फ़ॉर्मेट को सम्मान देते हुए एक दिन में बस एक ही रचना प्रस्तुत करें | हमें खुशी होगी यदि कोई रचनाकार अपनी क्षमता के अनुसार तीन रचनाओं को तीन अलग अलग विधाओं में प्रस्तुत कर सके | यदि कोई व्यक्ति सिर्फ़ एक ही विधा का जानकार है, तो वह व्यक्ति उस एक विधा में भी प्रस्तुति दे सकता है, पर याद रहे:- एक व्यक्ति एक दिन एक रचना (कुल तीन दिनों मे अधिकतम तीन रचनानायें)

यदि किसी व्यक्ति को कोई शंका हो तो यहाँ क्लिक करें  तरही मुशायरा / इवेंट्स से जुड़े प्रश्नोत्तर


अपनी रचनाएँ पोस्ट करने के लिए आयोजन की अवधि के दौरान सुनिश्चित करें कि आप अपनी रचनाएँ पोस्ट करते वक्त पेज नंबर १ पर हों |  आपकी रचनाएँ इस अपील के ठीक नीचे के सफेद रंग वाले बॉक्स "Reply to This' में पेस्ट कर के 'Add to Reply' को क्लिक कर दें |

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ०१ फरवरी लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

आप सभी के सहयोग से साहित्य के लिए समर्पित ओबिओ मंच नित्य नयी बुलंदियों को छू रहा है और आप सभी का दिल से आभारी है | इस ४थे महा इवेंट में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित पधार कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को आनंद लूटने का मौका दें |

 

नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश महा इवेंट के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके  इ- मेल admin@openbooksonline.com पर १ फरवरी से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही महा इवेंट प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है| 

सादर

नवीन सी चतुर्वेदी
ओबिओ परिवार

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Replies to This Discussion

Prakriti ke is anupam charitr ko baakhoobi bayan kiya hai Achaary ji ne ...
Behatreen rachna padhne ka soubhaagy miula hai ...
आचार्य जी तो सोते सोते भी ग़ज़लें लिख सकते हैं। वाकई तजुर्बे का कोई पर्याय नहीं। इतनी सुंदर ग़ज़ल पढ़वाने के लिए साधुवाद।

khili jo jhari vah,n fir bhi mari vah

sugandhit pavan tum jahan ho bahana

badhai sahab

ज्यूँ कल कल चले है नदी कोई पावन, 
मुझे कुछ लगा यूँ सलिल का तराना !
अत्यंत मधुर सुन्दरतम भाव |
आदरणीय आचार्य जी, सही टिपण्णी की गयी की आप सोते समय भी लिख सकते है और केवल लिख नहीं सकते बल्कि इतना अच्छा लिखते है की मजा आ ही जाता है| सच में आप के तजुर्बे का कोई पर्याय नहीं|

न तनकर रहो तुम, फलो तो झुको तुम.

नियति चाहती है हमें यह सिखाना..

फूलो-फलो तो, न जोड़ो-धरो तुम. 

मिला जो जहाँ जब, तुरत ही लुटाना..

कभी जब अहम् का, वहम हो तनिक भी.

चुल्लू में लेकर 'सलिल', मुँह दिखाना..

 

क्या कहने! सम्पूर्ण रचना ही अनुकरणीय है | आपको नमन |

कभी जब अहम् का, वहम हो तनिक भी.

चुल्लू में लेकर 'सलिल', मुँह दिखाना..

 

वाह!! ये शेर तो करोड़ों का हो गया|

कभी  अहम का  वहम हो तनिक भी'चुल्लू में लेकर सलिल मुंह दिखाना।

बहुत ही मनभावन रचना। मुबारकबाद।

vah pandey ji
शुक्रिया
श्री शेष जी आपका आशीर्वाद और प्रोत्साहन बना रहे | आभार |

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