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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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बढ़िया रचना बधाई -
ये पंक्तियाँ अच्छी है विशेष रूप से -एक राँझा था जिसने दुनिया को इश्क करना सिखाया था
हीर बहुत हैं पर वो राँझा आज अकेला लगता है ..
बहुत खूब वीरेंदर जी ,
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