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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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मैंने सोचा आज गज़ल गंभीर नहीं लिखते
कभी कभी हल्का खाना भी अच्छा लगता है
अरे वाह वाह वाह
क्या बात है तिवारी जी आप तो छा गए
दोनों मिसरों में ऐसा जुड़ाव कमाल है
थोडा हैरान भी हूँ,,, थोडा जला भुना भी हूँ
दिल खुश कर दित्ता
ठाले बैठे तो पहले से स्थापित हैं , आपने बैठे ठाले
एक हज़ल पर मेहरबानी अता कर दी ,मुबारकबाद।
तुम जानो तुमने क्या खोया औ क्या पाया है
मुझको सब खोकर कुछ पाना अच्छा लगता है
वाह वाह , बहुत खूब , सब खोकर कुछ पाना ... बुलंद ख्याल , बधाई !
आप सभी बेहतरीन रचनाए लिखते है, मैं तो अपनी कोशिश को भी इस लायक नही समझता की आपकी रचनाओ के साथ पोस्ट करूँ,
फिर भी एक बार फिर कोशिश की है,,, मैने तो अपने जज़्बात आपके सामने रखे है,
रदीफ़ काफिया वग़ैरह मैं नही समझता, मैं तो सिर्फ़ अपने ज़ज़्बात आप लोगो के साथ साझा कर रहा हूँ...
शायद इसी तरह कभी ghazal की बारीक़ियाँ भी सीख लूँगा....आप सभी को आपकी रचनाओं पर बधाई.....
तेरी तमन्ना फिर जाग उठी है ऐसा लगता है,
दिल का हर इक कोना महका महका लगता है.....
तुझसे रिश्ता क्या है, कुछ समझ आता नही,
गैर खिरद को दिल को पर तू अपना लगता है.....
दिल का धड़कना तेरे जाते ही बंद हो जाएगा,
तेरे बिना अब जीना किसको अच्छा लगता है,
दिन दिन भर तेरी यादों के जुगनू चुनता हूँ,
शाम ढले इस सूने घर मे मेला लगता है.....
मिट्टी के टूटे घरों में प्यार अभी पलता है,
जिनके आगे ताजमहल भी फीका लगता है.....
वाह वाह वाह हरजीत जी
क्या लाजवाब भावाभिव्यक्ति
मज़ा आ गया
अगर आपके पास कहाँ है तो आज नहीं तो कल नियम भी सीख लेंगे
दिक्कत तब होती जब आप नियम से परिचित होते और बे कहन कह रहे होते
हार्दिक बधाई
दिन दिन भर तेरी यादों के जुगनू चुनता हूं,
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है।
बेहेतरीन शे'र, खलसा जी आपके अधिकान्श अशआर
छंद के आग़ोश में है। आपका ज़रूर इनसे जायज़ रिश्ता लगता ।है
तेरी तमन्ना फिर जाग उठी है ऐसा लगता है,
दिल का हर इक कोना महका महका लगता है.....
bahut hi badhiya prastuti harjeet sahab....dil khush hua padh kar....likhte rahen aisehi
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