सभी साहित्य प्रेमियों को प्रणाम !
साथियों जैसा की आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रस्तुत करते है ......
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक ९
इस बार महा उत्सव का विषय है "बरखा बहार आई"
आयोजन की अवधि :- ८ जुलाई २०११ शुक्रवार से १० जुलाई २०११ रविवार तक
महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है ...
विधाएँसाथियों बड़े ही हर्ष के साथ कहना है कि आप सभी के सहयोग से साहित्य को समर्पित ओबिओ मंच नित्य नई बुलंदियों को छू रहा है OBO परिवार आप सभी के सहयोग के लिए दिल से आभारी है, इतने अल्प समय में बिना आप सब के सहयोग से कीर्तिमान पर कीर्तिमान बनाना संभव न था |
इस ९ वें महा उत्सव में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित आमंत्रित है, इस आयोजन में अपनी सहभागिता प्रदान कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को भी आनंद लूटने का मौका दें |
( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ८ जुलाई लगते ही खोल दिया जायेगा )
यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |
नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश महा इवेंट के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर ८ जुलाई से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही महा उत्सव प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |
( "OBO लाइव महा उत्सव" सम्बंधित किसी भी तरह के पूछताक्ष हेतु पर यहा...
मंच संचालक
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अब तो मौसम भी है. और मौका-ए-दस्तूर भी.
OBO पर रचनाए और उस पर अभिव्यक्ति पढकर मजा आ गया.
ये तो आप लोगों का आशिर्वाद है.
प्रणाम
क्या बात है गणेश जी.. अपनी बोली अपनी भाषा.. बहुत सुन्दर...
सही कही अनीता जी, आंचलिक शब्द सीधे दिल से निकल कर दिल तक जाते है , इसलिए अक्सर मैं अपनी रचनाओं में सरल और बोल चाल के शब्दों का प्रयोग करता हूँ |
सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद |
//कारी-कारी रतिया में, कारे-कारे बदरा जो,
साय-साय पूरुआ भी, जिया डेरवाय है |//
वाह भाई वाह !बहुत ही सटीक चित्रण किया है आपने..............
//तड़-तड़ बिजुरिया, तड़के गगन बीच ,
पिया बिनु सूनी सेज, हिया तड़पाय है |//
अय हय हय.......यही सच्चाई है मित्र ! जिसे बखूबी बयां किया है आपने !
//छम-छम बरखा भी, बरसे आंगन मोर ,
बिरह के लोर मोर, कजरा बहाय है |//
वाह वाह वाह!!! एक तरफ बिरह के लोर और दूजी ओर बरखा का छम छम संगीत दोनों इं आनुपन सामंजस्य स्थापित किया है आपने ....
//कुहकत मन कहे, मायके रहत नीक,
गवना कराय पापी, दुबई कमाय है |//
क्या बात है ...........यह चरण तो सबसे जोरदार है भाई ..........
मुझे अत्यंत खुशी हो रही है कि आपकी घनाक्षरी में दिनों-दिन अभूतपूर्व निखार आता जा रहा है ....................... बहुत बहुत बधाई मित्र !......:)))))
बहुत देर से दर पे आँखे लगी थी
हुजुर आते आते बहुत देर कर दी.....:-)))))))))))
अम्बरीश भाई आपने जिस सलीके से इस घनाक्षरी की विस्तृत समीक्षा किया है वो सराहनीय है, सच तो यही है की आप और गुरुवर आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी की प्रेरणा है जो इस घनाक्षरी की रचना हो सकी है |
बहुत बहुत आभार आपका मित्र, बस ऐसे ही नेह छोह बनाये रखे |
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