बुंदेलखंड के लोक मानस में प्रतिष्ठित आल्हा या वीर छंद
संजीव 'सलिल'
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आल्हा या वीर छन्द अर्ध सम मात्रिक छंद है जिसके हर पद (पंक्ति) में क्रमशः १६-१६ मात्राएँ, चरणान्त क्रमशः दीर्घ-लघु होता है. यह छंद वीर रस से ओत-प्रोत होता है. इस छंद में अतिशयोक्ति अलंकार का प्रचुरता से प्रयोग होता है.
छंद विधान:
आल्हा मात्रिक छंद सवैया, सोलह-पन्द्रह यति अनिवार्य.
गुरु-लघु चरण अंत में रखिये, सिर्फ वीरता हो स्वीकार्य..
अलंकार अतिशयताकारक, करे राई को तुरत पहाड़.
ज्यों मिमयाती बकरी सोचे, गुँजा रही वन लगा दहाड़..
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महाकवि जगनिक रचित आल्हा-खण्ड इस छंद का कालजयी ग्रन्थ है जिसका गायन समूचे बुंदेलखंड, बघेलखंड, रूहेलखंड में वर्ष काल में गाँव-गाँव में चौपालों पर होता है. प्राचीन समय में युद्धादि के समय इस छंद का नगाड़ों के साथ गायन होता था जिसे सुनकर योद्धा जोश में भरकर जान हथेली पर रखकर प्राण-प्रण से जूझ जाते थे. महाकाव्य आल्हा-खण्ड में दो महावीर बुन्देल युवाओं आल्हा-ऊदल के पराक्रम की गाथा है. विविध प्रसंगों में विविध रसों की कुछ पंक्तियाँ देखें:
पहिल बचनियां है माता की, बेटा बाघ मारि घर लाउ.
आजु बाघ कल बैरी मारउ, मोर छतिया कै डाह बुझाउ..
('मोर' का उच्चारण 'मुर' की तरह)
बिन अहेर के हम ना जावैं, चाहे कोटिन करो उपाय.
जिसका बेटा कायर निकले, माता बैठि-बैठि मर जाय..
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टँगी खुपड़िया बाप-चचा की, मांडौगढ़ बरगद की डार.
आधी रतिया की बेला में, खोपड़ी कहे पुकार-पुकार..
('खोपड़ी' का उच्चारण 'खुपड़ी')
कहवाँ आल्हा कहवाँ मलखे, कहवाँ ऊदल लडैते लाल.
('ऊदल' का उच्चारण 'उदल')
बचि कै आना मांडौगढ़ में, राज बघेल जिए कै काल..
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अभी उमर है बारी भोरी, बेटा खाउ दूध औ भात.
चढ़ै जवानी जब बाँहन पै, तब के दैहै तोके मात..
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एक तो सूघर लड़कैंयां कै, दूसर देवी कै वरदान. ('सूघर' का उच्चारण 'सुघर')
नैन सनीचर है ऊदल के, औ बेह्फैया बसे लिलार..
महुवरि बाजि रही आँगन मां, जुबती देखि-देखि ठगि जाँय.
राग-रागिनी ऊदल गावैं, पक्के महल दरारा खाँय..
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कहते हैं कि ऊदल यानि उदय सिंह राय तो पथ्वी राज के साथ हुई युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे. आल्हा का चिरंजीव होना अवश्य जनश्रुतियों में है. मैहर के शारदा मन्दिर में मुझे भी कई बार सपरिवार पूजन-अर्चन का पूण्य अवसर मिला है. यह कथा वस्तुतः वहाँ प्रचलित है कि पास के तालाब से जल भर कर आल्हा आज भी माता का प्रतिदिन प्रथम पूजन करते हैं. जन-मान्यता के सार के प्रति सादर नमन.
आदरणीय / आदरणीया
आल्हा छंद पर कोई भी जानकारी " भारतीय छंद विधान " में मुझे नहीं मिली । मात्रा 16 - 15 के अतिरिक्त भी अन्य कोई आवश्यक नियम हो तो कृपया आल्हा छंद के 2 - 4 उदाहरण सहित शब्द / मात्रा के संयोजन आदि पर विस्तृत जानकारी प्रदान करने की कृपा करें ॥ धन्यवाद
सादर .... अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव
आदरणीय अखिलेशभाईजी, आप शायद हमेशा शीघ्रता में होते हैं या आपकी तरफ स्लो नेट-कनेक्शन की समस्या है. यदि भारतीय छंद विधान समूह में कायदे से सर्फ़िंग करें तो आप अवश्य लाभान्वित होंगे.
इस लिंक को देखें --
http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...
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