For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वस्तुतः, ग़ज़ल या छान्दसिक रचनाएँ पढ़ने की चीज़ थी ही नहीं. ये श्रोताओं द्वारा सुनने के लिए लिखी अथवा कही जाती थीं. काव्यगत प्रस्तुतियों की अवधारणा ही यही थी. इन अर्थों में किसी तरह के पंक्चुएशन-चिह्नों का कोई अर्थ नहीं हुआ करता था. रचनाकार अपनी भंगिमाओं, स्वरों में उतार-चढ़ाव और पढ़ने के अंदाज़ द्वारा अपने पदों या मिसरों के शाब्दिक और अंतर्निहित भाव श्रोता/सामयिन तक पहुँचाता था. इसी कारण छान्दसिक रचनाओं में अलंकारों की आवश्यकता हुई. ताकि, संप्रेषण के क्रम में आवश्यक कौतुक या चमत्कार पैदा किया जा सके. एक समय ऐसा भी आया, जब विन्यास-कौतुक और काव्य-चमत्कार मूल कथ्य पर ही भारी पड़ने लगे.

सबसे रोचक तथ्य यह भी है कि बेसिक चिह्नों को यानि पूर्णविराम या संगीत के कतिपय चिह्नों को छोड़ दें तो कोई चिह्न भारतीय काव्य-शास्त्र ही नहीं भाषा-व्याकरण का भी सनातनी अंग नहीं है. इनको या तो गणितशास्त्र से उधार लिया गया है, या इनका विदेशी भाषाओं से आयात हुआ है. जैसे, अल्पविराम, कोलन, सेमी कोलन, डैश, विस्मयादिबोधक या प्रश्नवाचक चिह्न, इन्वर्टेड कॉमा आदि-आदि..

इस आलोकमें यह भी कहना उचित होगा कि पंक्चुएशन के चिह्न मूलतः दो प्रकार होते हैं.

एक, जिनका प्रयोग डेलिमिटर की तरह होता है. यानि, वाक्य, जोकि शब्दबद्ध हो रहे भावों का वाचिक निरुपण हैं, उनके बीच सेपेरेशन के लिए या यति (रुकावट) के लिए इनका प्रयोग होता है. जैसे, पूर्णविराम, अल्पविराम, डैश आदि.
दूसरे, वे जो उन वाक्यों के भावों या वाक्यों की अवस्था को प्रस्तुत करने के लिए अपनाये जाते हैं. जैसे प्रश्नवाचक या विस्मयादिबोधक चिह्न, इन्वर्टेड कॉमा, डॉट्स, डैश आदि. दोनों प्रकार के चिह्नों का प्रयोग एक जैसा या एक जैसे उद्येश्य के लिए विरले ही होता है.

अब तो वाक्यों के साथ-साथ विभिन्न स्माइली के प्रयोग भी आम हो चले हैं. जो ऑनलाइन चैटिंग-बॉक्स से निकल कर अब विभिन्न अभिव्यक्तियों का हिस्सा बनने लगे हैं. ये स्माइली वाक्यों को मात्र चिह्नित ही नहीं करते, बल्कि उनके अंतर्निहित भावों को दृश्य रूप में प्रस्तुत करने का माध्यम भी बनने लगे हैं. जैसे कि हास्यपरक वाक्य के बाद मुस्कान की स्माइली, व्यंग्यात्मक वाक्यों के बाद ’कनखी’ इशारे की स्माइली, चिढाऊ वाक्यों के बाद ’जीभ बिराने’ की स्माइली आदि-आदि.  लेकिन अभी तक इन स्माइलियों को साहित्यिक रचनाओं में प्रयुक्त नहीं किया जाता है, न इनको वैधानिक मान्यता ही मिली है.  

ग़ज़ल, जो कि अब भारतीय काव्य-शास्त्र का एक अहम हिस्सा हो चुकी है, आज अपने पारम्परिक रूप के अलावे (या आगे) बहुत कुछ अलग रूप अपना चुकी है. ग़ज़ल अब बहुत बदल गयी है. उर्दू भाषिक ग़ज़लें यदि उतनी नहीं बदलीं, तो अन्य भाषाओं में इसने अपने कलेवर एकदम से बदल लिये हैं. छान्दसिक रचनाओं की तरह ग़ज़लों में भी पंक्चुएशन से सम्बन्धित चिह्न आवश्यक नहीं हुआ करतेे थे. अब जबकि ग़ज़लें पढ़ी जाने लगीं हैं तो शब्दों के चमत्कारी प्रयोगों के अलावे कई गणितीय चिह्नों द्वारा भावार्थ या आवश्यक भावदशाओं को संप्रेषित करने की आवश्यकता बनने लगी है. यह आज की मांग भी है. कारण पुनः वही है, कि ग़ज़ल सुनने से अधिक पढ़ने की चीज़ हो गयी है. अब श्रेणीबद्ध विन्दु या डॉट्स (यानि, .... ), या, पंक्चुएशन के तमाम चिह्न जो एकल रूप में प्रयुक्त किये गये हों, या, मिश्रित रूपों में वाक्यों में समाहित किये जाने लगे हैं. ताकि एक सामान्य पाठक प्रस्तुतियों के क्रम में रचनाकार (ग़ज़लकार) द्वारा जीये जा रहे भावों के स्तर पर उसके साथ समवेत हो सके.

किसी मिसरे के बाद विस्मयादिबोधक और प्रश्नवाचक चिह्नों का प्रयोग इन्हीं अर्थों में होता है. या, कई बार इन दोनों का एक साथ भी प्रयोग कर दिया जाता है ताकि एक पद या पंक्ति या मिसरे के यौगिक भाव उभर कर आयें तथा पाठक उनसे अपने विचारों की तारतम्यता बिठा सके. यानि इनके माध्यम से उक्त मिसरा पाठक के लिए मात्र प्रश्न न हो कर औचक ही तारी हो गयी भावदशा को भी अभिव्यक्त करने का माध्यम हो जाता है.  

इस तरह, हम देखते हैं कि वाक्यों में या पंक्तियों में पंक्चुएशन के चिह्नों का उचित और सटीक प्रयोग आवश्यक है.

लेकिन इसीके साथ एक और मंतव्य अतुकान्त कविताओं को लेकर है.

इन तरह की कविताओं में बहुत आवश्यकता न हो तो रचनाकारों द्वारा ऐसे किसी तरह के डेलिमिटर से बचने की प्रवृति दीखती है. या कोई चिह्न बड़े ही चिंतन के बाद प्रयुक्त होता है. इसका पहला कारण तो यह है कि अतुकान्त कविताएँ अत्यंत क्लिष्ट भावनाओं का संप्रेषण होती हैं. यह मान कर चला जाता है कि सामान्य या एकसार भावदशाओं की अभिव्यक्ति कविताओं की अन्यान्य विधाओं के माध्यम से हो सकती है, लेकिन मनोवैज्ञानिक स्तर की दशाओं या अत्यंत दुरूह या यौगिक भावदशाओं का बोझ उठा सकने में अन्यान्य विधाओं की रचनाएँ सक्षम नहीं हुआ करतीं, न उन विधाओं के विशेषज्ञ इस तरह की किसी अभिव्यक्तियों को विधा के अनुरूप ही मानते हैं. यही कारण है, कि एक सीमा के बाद भावनाओं की क्लिष्टता मात्रिक या वर्णिक अभिव्यक्तियों की पकड़ या पहुँच से बाहर हो जाती हैं या कर दी जाती हैं. यही अतुकान्त कविताओं की अपरिहार्यता का मुख्य कारण भी है. 

मैं उन बहसों और तर्कों को अधिक मान नहीं देता जिनके अनुसार मात्रिकता या वर्णिकता के नियमों को समुचित रूप से न निभा पाने के कारण रचनाकार अतुकान्त कविताओं का शॉर्टकट अपनाते हैं. हालाँकि, यह तथ्य भी एकदम से नकारे जाने योग्य नहीं है. किन्तु, मैंने ऐसे कई रचनाकारों को पढ़ा है जो मात्रिक तथा वर्णिक रचनाओं में जिस सिद्धहस्तता से रचनाकर्म करते हैं, उसी सिद्धहस्तता और गंभीरता से अतुकान्त कविताएँ भी करते हैं. उनके लिए काव्य की विधाएँ ही अलग-अलग हैं और तदनुरूप ही उनका रचनाकर्म होता है. रचनाओं का वैधानिक और शास्त्रीय उपयोग सर्वोपरि है. आगे चलकर कई रचनाकार अपनी प्रवृति और अपनी क्षमता के अनुसार एक विधा या कतिपय विधाओं का चयन कर काव्य-जगत में अपना परिचय स्थापित कर लेते हैं.    

अतुकान्त कविताओं में प्रयुक्त शब्द, शब्दों का विन्यास, उनसे बने वाक्य या वाक्यांशों का प्रस्तुतीकरण कई-कई अर्थ तथा कई-कई भावों के कई-कई आयाम समेटे हुए प्रस्तुत होते हैं. इस विधा में अधिकांशतः रचनाकार यह मान कर चलते हैं कि उनका पाठक ’शिक्षित’ मात्र न होकर वैचारिक रूप से एक विशिष्टता को प्राप्त होता है. गूह्यता ऐसी रचनाओं की कई बार अन्योन्याश्रय विशिष्टता हुआ करती है. इसी गूह्यता के कारण चिह्न आदि से भी बचने की कोशिश होती है कि पाठक स्वयं निर्णय करे कि पंक्तियों से जो भाव उभर कर आ रहे हैं, उन्हें वह अपनी किस भावदशा के परिप्रेक्ष्य में स्वीकार करे. वह चकित होता है, या उन्हें सामान्य रूप से लेता है.

अतः, अतुकान्त रचनाओं का अनुकरण कर गीतात्मक रचनाओं में अपनाये जाने वाले पंक्चुएशन के चिह्नों को नकारने लग जाना या इस हेतु आग्रह करना दो ध्रुवों को मिलाने की कोशिश करना है. अलबत्ता यह रचनाकार पर निर्भर करता है कि वह किस तरह से अपनी अभिव्यक्तियों को पाठकों के समक्ष परोसता है.
 
**************
-सौरभ
**************

Views: 1831

Replies to This Discussion

आदरनीय सौरभ जी

सुश्री विद्या बिंदु जी ने आप द्वारा गजल के मतले में एक साथ विस्मयबोधक ओ प्रश्नचिन्ह लगाये जाने पर जो जिज्ञासा व्यक्त की तदनुक्रम में उक्त आलेख से रूबरू हुआ i बहुत सी नयी जानकारियाँ मिली i  इस विद्वतापूर्ण आलेख के लिए आपको शत -शत बधाई i 

किसी पाठक की जिज्ञासा कई आलेखों का कारण बन सकता है, आदरणीय गोपालनारायनजी. अलबत्ता, किसी को अपने लेख या प्रस्तुति से सम्मानित करना मेरे आलेख या मेरे रचनाकर्म का उद्येश्य न आजतक रहा है न आगे होगा.

परस्पर जानकारियों को साझा करना अवश्य किसी रचनाकर्म का उद्येश्य होना चाहिये.

सादर

वाह आदरणीय !
आपने यह त्वरित पर गहन और बोधगम्य आलेख प्रस्तुत कर मेरा बहुत मान बढ़ाया है।
काफी कुछ नया जानने को मिला।

//कोई चिह्न भारतीयय काव्य-शास्त्र ही नहीं भाषा-व्याकरण का भी सनातनी अंग नहीं है. इनको या तो गणितशास्त्र से उधार लिया गया है, या इनका विदेशी भाषाओं से आयात हुआ है. जैसे, अल्पविराम, कोलन, सेमी कोलन, डैश, विस्मयादिबोधक या प्रश्नवाचक चिह्न, इन्वर्टेड कॉमा आदि-आदि..//

सर,मेरा अध्ययन व्यापक तो नहीं लेकिन साधारणतः यह चिह्न हिंदी भाषा के अंग के रूप में ही बताये जाते हैं...इसलिए आपका यह कथ्यमन में कुछ संशय उत्पन्न कर रहा है,बाकी मेरी सभी जिज्ञासाओं को सहला रहा है आपका यह लेख।
आपको बहुत धन्यवाद आदरणीय इस महत्वपूर्ण लेख के लिए।
सादर
सादर

//मेरा अध्ययन व्यापक तो नहीं लेकिन साधारणतः यह चिह्न हिंदी भाषा के अंग के रूप में ही बताये जाते हैं.. इसलिए आपका यह कथ्यमन में कुछ संशय उत्पन्न कर रहा है,//

ऐसी कण्ट्रोवर्सियल बातें आपको उचित लगती हैं क्या ?

या तो आप उद्धरण सहित तथ्यात्क बातें करें या फिर वह सुनें-समझें जो कहा गया है. मैं काव्यशास्त्र में चिह्नों को लेकर और उनके प्रयोग की बातें कर रहा हूँ. हिन्दी भाषा के पहले क्या काव्यशास्त्र नहीं था ? 

पूरे लेख को एक बार फिर से पढ़ जाइये. 

 आदरणीय सौरभ सर जी, 

आपके आलेख ने विषय पर वृहत ज्ञान दिया है, और मैंने भी सच्चाई से उसे सराहा है। यह भी सच्चाई है कि पढ़ने पर तनिक संशय हुआ ... वह इसलिए कि आप आलेख में punctuation के मूलभूत तत्व की बात कर रहे हैं, और सही कह रहे हैं,और मैं हिन्दी साहित्य में उसके प्रायोगिक कोण को देख रही थी।

इस प्रायोगिक कोण के कारण ही मूलत: मेरा प्रश्न उठा था, अत:  स्वाभाविक है कि यह अभी भी मेरी तहों में तैर रहा था।

आशा है आप मेरी सच्चाई को देख सकते हैं।

सादर

आदरणीय सौरभ पाण्डे सर आपके इस विशिष्ट आलेख से काफी नई जानकारियाँ मिली और जो थी वो स्पष्ट हुई आपका बहुत बहुत धन्यवाद आभार 

जय-जय !!

आदरणीय सौरभ जी।

ग़ज़ल में विराम चिह्नों के प्रयोग में अभी भी भ्रम में हूँ। यदि इस विषय पर थोड़ा विस्तार से प्रकाश पड़ जाए तो मेहरबानी होगी।

बहुत आवश्यक जानकारी देता विस्तृत आलेख 
साधुवाद आदरणीय 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा त्रयी .....वेदना
"आ. भाई सुशील जी, सादर आभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . असली - नकली
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post दिल चुरा लिया
"   आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, प्रस्तुत ग़ज़ल प्रयास की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब।"
Wednesday
Sushil Sarna posted blog posts
Tuesday
Ashok Kumar Raktale posted a blog post

दिल चुरा लिया

२२१ २१२१   १२२१  २१२  उसने  सफ़र में उम्र  के  गहना  ही  पा लियाजिसने तपा के जिस्म  को  सोना बना…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पतझड़ छोड़ वसन्त में,  उग जाते हैं शूलजीवन में रहता नहीं, समय सदा अनुकूल।१।*सावन सूखा  बीतता, कभी …See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीय उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदरणीया बबिता जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service