For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महोदय यह लेख मेरे अपने ब्लॉग अंतर्घट पर प्रकाशित है. मगर क्योंकि एक तो यह लेख तथ्यपरक है और दूसरे यह लेख मेरे आगे के लेखों में भूमिका का कार्य भी करेगा इसलिए आपसे अनुरोध है की इसको प्रकाशित कर दें. 

अंतर्घट का अर्थ (अंतर+घट) मतलब  शरीर के भीतर वोह स्थान जहाँ ईश्वर का निवास स्थान है. इस विषय में सभी धर्म एक  मत है की जिस ईश्वर को हम मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा या गिरजा घर में ढूँढ़ते है वोह भगवान् हमारे ही भीतर अर्थात अंतर्घट में है . और अंतर्घट में वोह किस प्रकार मिलेगा. या उसको पाने के लिए हमे क्या करना होगा इसको शाश्त्रों के आधार पर मै व्याख्या करने की कोशिश अपने गुरु की कृपा से करूँगा .इस सन्दर्भ में मै अपने शीश को अपने उन्ही सतगुरु सर्ब श्री आशुतोष जी महाराज के पावन चरणों में रखते हुए  मै प्रार्थना करता हूँ की वे अपनी  कृपा मुझ पर निरंतर वनाये रखे.

हमारे शाश्त्र ग्रुन्थ कहते है की ईश्वर किसी जीव पर तीन प्रकार की कृपा करता है . किसी जीव को मनुष्य जनम देकर वोह पहली कृपा करता है. इस विषय में संत तुलसी दास जी कहते है की
 बड़े भाग मानुष तन पावा .सुर दुर्लभ सब ग्रुन्थं गावा
इश्वर धाम मोक्ष कर द्वारा .पाई ना जे जन उतारी पारा ,
ते परित्रण क्ल्पई सर धुन धुन पछताई. काल्हि कर्मही ईश्वरही मिथ्या दोष लगाही .
अर्थात मनुष्य तन दुर्लभ है और मोक्ष का द्ववार भी है और जो इस तन को पाकर भी इश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर नहीं होता उसे अंत समय में पछताना पड़ता है और वोह कभी भगवान् को कभी कभी समय को दोषारोपण करता है. मगर दुर्लभ होते हुए भी यह जीवन क्षण भंगुर भी है. कबीर दास कहते है की
पानी कर बुदबुदा अस मानस की जात. देखत ही छिप जायेगा ज्यों तारा प्रभात.
     ईश्वरकिसी जीव पर दूसरी कृपा यह करता है की मानव के जीवन में किसी संत का पदार्पण हो जाये. क्यों की  ईश्वर की प्राप्ति विना पूर्ण सतगुरु के नहीं हो सकती है. तुलसी दास जी के शब्दों में.
            राम सिन्धु सज्जन घन धीरा. चन्दन तरु प्रभु संत समीरा
अर्थात जिस प्रकार समुन्द्र के खारे पानी को वादल पीने योग्य निर्मल वनात है एवं चन्दन की खुशबू को हवा नासिका द्वारा घ्रण करने योग्य वनाती है उसी प्रकार पूर्ण सतगुरु  ईश्वर के तेज़ को हमे दिखलाता है शब्दों पर गौर करे दिखलाता है . और हमे हमारे अंतर्घट में परम पिता परमात्मा का दर्शन करवाता है. इस विषय में गीता में भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते है की
             ना तू माम शक्य से द्रुष्ट मनु नैव स्व- चक्षु सा दिव्यं ददामि ते चक्षु पश्य्मे योग ऐश्वर्या.

हे अर्जुन तू मुझे अपने भौतिक नेत्रों से नहीं देख सकता है मै तुझे दिव्या नेत्र प्रदान करता हूँ फिर तू मेरे अलौलिक दिव्य रूप का दर्शन कर सकेगा .  और जब कृष्ण ने उसे दिव्या नेत्र प्रदान किया तो उसने कहा की हे प्रभु मै अपने दिव्य नेत्रों से करोडो सूर्यों का प्रकाश देख रहा हूँ अर्थात हमे समझना चाहिए की इश्वर प्रकाश रूप में रहता है. हमारे तथा अन्य सभी धर्मों में इश्वर को प्रकाश रूप वताया है.
जैसे वाइविल के अनुसार GOD IS LIGHT कुरआन के हिसाब से नूर अल्लाह नूर का मतलब तेज़ या प्रकाश होता है सिख धर्म के अनुसार भी प्रकाश उत्सव मनाया जाता है चर्च में मंदिर में गुरूद्वारे में सभी जगह प्रकाश के प्रतीक में ज्योति जलाई जाती है और यही प्रकाश जब पूर्ण सतगुरु किसी को दिखाता है तो फिर वोह व्यक्ति  इश्वर प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है और यही अंतर्घट है 




                                                                                                              धन्यवाद
                                                                                                                 आपका मुकेश  

Views: 399

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service