आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ चौवनवाँ आयोजन है.
इस बार के आयोजन के लिए सहभागियों के अनुरोध पर अभी तक आम हो चले चलन से इतर रचना-कर्म हेतु एक विशेष छंद साझा किया जा रहा है।
इस बार के दो छंद हैं - कुकुभ छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
23 मार्च’ 24 दिन शनिवार से
24 मार्च’ 24 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
23 मार्च’ 24 दिन शनिवार से 24 मार्च’ 24 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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कुकुभ छंद
पूरब हो या उत्तर दक्षिण, क्रिकेट के सब दीवाने ।
जलते रहते अभी धूप में, आठ देश हैं परवाने ।।
क्रिकेट भारत बड़ा खेल है, सभी जगह खेला जाता ।
यथा काश्मीर कन्याकुमारी, सब लोगों को यह भाता ।।
सामन्त कभी खेला करते, सम्प्रति रंक रिझाता है ।
बच्चों से बूढ़ो तक इसमे, मजा खूब आ जाता है ।।
काम छोड़ कर फेरी वाला, मन ..को खेल.. रमाता है ।
चाहे हो कुछ देर सही पर, दिल तो खुश कर पाता है ।।
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, प्रदत्त चित्र पर सुन्दर छंद रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी द्वितीय छंद कुकुभ न होकर ताटंक हो गया है. सादर
आदरणीय चेतन प्रकाश जी,
आपके दोनों छंदों का स्वागत है। किंतु, दूसरा छंद कुकुभ छंद में निबद्ध नहीं हो सका है।
हार्दिक बधाइयाँ
कुकुभ छंद
खेल जगत के देख रहा हूँ, जाने कौन रचे माया ।
दाँव लगा हो हर पल जैसे, श्रमजल से लथपथ काया ।।
कर्म भाग्य से लड़कर कोई, गर्वित हो इतराता है ।
लेकिन हाथ किसी का हरदम, रीता ही रह जाता है ।।
जीवन सरिता एक सभी की, भला कहाँ हो सकती है ।
चाह मनुज की जो भी होती, दृष्टि वही बस तकती है ।।
खेल भाव से देखे कोई, कोई समय बिताता है ।
व्यर्थ समय को खोने वाला, रीता ही रह जाता है ।।
मैं इक छोटा सा व्यापारी, सर पर बोझ रखे सारा ।
आमदनी की भाग दौड़ में, जीती बाजी भी हारा ।।
कभी बदलते यहाँ खिलाड़ी, फिर हर खेल रिझाता है ।
दर्शक बदले, मन मेरा बस, रीता ही रह जाता है ।।
एक इशारा निर्णायक का, हर धड़कन पर भारी है ।
जितनी है कंदुक की सीमा, खेल वहाँ तक जारी है ।।
राजा हो या रंक यहाँ पर, कौन सदा रह पाता है ।
अहंकार में जीने वाला, रीता ही रह जाता है।।
जब तक खेल चलेगा तब तक, मेरा यहाँ ठिकाना है ।
यहीं नए कुछ साथी बनते, बिछड़ सभी को जाना है ।।
मेरा कद छोटा है तुमसे, मगर प्रेम का नाता है ।
भरम बड़प्पन का जो पाले, रीता ही रह जाता है ।।
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मौलिक व अप्रकाशित
कर्म भाग्य से लड़कर कोई, गर्वित हो इतराता है।
लेकिन हाथ किसी का हरदम, रीता ही रह जाता है।।.... चित्र के भावों को बहुत खूबसूरती से आपने इस छंद में उकेरा है.
आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी सादर, आपने प्रदत्त चित्र पर सभी छंद बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचे हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें. फिर भी आपकी प्रस्तुति के अंतिम तीन छंद कुकुभ न होकर ताटंक हो गए हैं. सादर
आपको सादर प्रणाम आदरणीय रक्ताले जी। आपने प्रोत्साहित किया इस हेतु आभार। आपका कथन उचित है छंद पर अब यह ध्यान रखना होगा।
वाह वाह वाह .. अत्युत्तम शाब्दिकता मोहित कर रही है। हार्दिक बधाइयाँ ..
शैल्पिक दृष्टि से भी छंद-रचनाओं को निबद्ध करना होता है। लावणी, कुकुभ और ताटंक छंद एक ही परिवार के छंद हैं। अतः इन पर होता काव्य-कर्म के क्रम में शचेत रहना आवश्यक है।
बहरहाल, आपकी प्रतिभा एवं आपके रचनाकर्म के प्रति साधुवाद
हार्दिक शुभकामनाएँ
कुकुभ छंद
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लेकर दबी कुछ लालसाएँ, खेल को वो ताकता है।
आदरणीया प्रतिभा जी, आपने क्रिकेट खेल के कारण क्रीडा-जगत में बन चुकी धौंस की खूब चर्चा की है। यह भले ही एक स्याह पक्ष है, किंतु सत्य है। हालाँकि, विगत दसेक वर्ष से क्रीडा-जगत का हाल सुधरा अवश्य है। फिर भी, सरकार और जनता के हवाले से अभी बहुत कुछ करना है।
हार्दिक बधाइयाँ
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