आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ उनसठवाँ आयोजन है।.
छंद का नाम - सार छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
21 सितंबर’ 24 दिन शनिवार से
22 सितंबर’ 24 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
सार छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
21 सितंबर’ 24 दिन शनिवार से 22 सितंबर’ 24 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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सार छंदः
श्राद्ध पितृ-पक्ष आवश्यक है, उद्धार हेतु आत्मा
करें हुतात्मा के हित तर्पण, मिले उन्हें परमात्मा
ब्राह्मण पाते भोज्य-दक्षिणा, मिलता मोक्ष स्वजन को
काक-बाज भी खाते पूरी, सुख मिलता कन-कन को
कुल देवता कृपा करते हैं, परिवार सुखी रहता
वंश-बेल निर्विघ्न चली है, ज्यौं गंगा जल बहता
संस्कार आधार है जीवन, अनुशासित हर पल है
बंधन नाते - रिश्तों होता, जुड़ाव मित्र सुफल है
सीख यही बच्चों को दे हम, पूर्वजों रहा ऋण है
हष्ट-पुष्ट शरीर हम दिखते, पोषित यह तृण-तृण है
रक्त उन्हीं का बहता रग-रग, तेज प्राण संचित है
अर्पण - तर्पण कृत्य हमारा, उनका श्राद्ध उचित है
मौलिक व अप्रकाशित
आयोजन में आपकी प्रस्तुति का स्वागत है, आदरणीयचेतन प्रकाश जी। चित्र के मर्म को आपने समझा, तदनुरूप आपने रचना की है।
शुभ-शुभ
आदरणीय, सौरभ साहब, आपने मेरी प्रस्तुति को संस्तुत किया, इसके लिए हृदय से आपका आभारी हूँ, श्री जी। शुभ रात्रि !
रक्त उन्हीं का बहता रग-रग, तेज प्राण संचित है
अर्पण - तर्पण कृत्य हमारा, उनका श्राद्ध उचित है// सुन्दर सार्थक चित्रानुकूल सृजन..हार्दिक बधाई आदरणीय
आदरणीय चेतन प्रकाशजी
पितृ पक्ष के उद्देश्य को लेकर सुंदर सार्थक रचना की बधाई।
सार छंद [ छन्न पकैया ]
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छन्न पकैया छन्न पकैया,क्वाँर मास में आता।
कृष्ण पक्ष पंद्रह दिन का जो, पितर पक्ष कहलाता॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, याद इन दिनों आती।
पूर्वज हैं किस लोक हमारे, चिंता हमें सताती॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, कष्टों से तारेगा।
श्राद्ध पिंड दान और तर्पण, मुक्त उन्हें कर देगा॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, रुचिकर भोग लगाते।
अग्नि काग चींटी गोमाता, सब माध्यम बन जाते॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, काग स्वधर्म निभाता।
कौआ जाने भविष्य सबका, वो है त्रिकाल ज्ञाता॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, पूर्वज आस लगाते।
जब कौएँ को भोग लगाते, तृप्त सभी हो जाते॥
छन्न पकैया छन्न पकैया, पाप न हम कर जायें।
इन दिनों भूल से कुत्ते को, कभी न भोग खिलायें॥
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मौलिक अप्रकाशित
आदरणीय अखिलेश जी
छन्न पकैया छन्न पकैया, याद इन दिनों आती।
पूर्वज हैं किस लोक हमारे, चिंता हमें सताती॥// चित्रानुकूल बहुत सुन्दर सार्थक सृजन.. हार्दिक बधाई
आदरणीया प्रतिभाजी
हार्दिक धन्यवाद , आभार
आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, सार छंद में छन्न पकैया का प्रयोग बहुत पहले अति लोकप्रिय था और सार छंद की पहचान भी था। आजकल इसका प्रयोग प्राय: नहीं होता। आपने इसका प्रयोग करके अति उत्तम कार्य किया है। सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।
आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।
सार छंद में चित्रानुकूल भाव
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ब्रह्मा जी के आगे कौआ, रोया निज दुख गाया,
इस जग में सब करते नफरत, क्यों पाई ये काया,
दर्द समन्दर जैसा अब तक, हम है सहते आये,
दया कीजिए अब तो हम पर, दया भाव मिल जाये।
—
ब्रह्मा बोले क्यों रोता है, सबको दुख सुख होता,
कौआ बोला मेरे जैसा, जीव सदा ही रोता।
खुशी न आई मेरे हिस्से, किया अपराध कैसा,
मिली खुशी है सबको जग में, और न कोई ऐसा।
—
खोली पोथी तब ब्रह्मा ने, देखा अनर्थ भारी,
भूल गया सुख देना इसको, गलती मेरी सारी।
ब्रह्मा बोला तेरे हिस्से, सुख लिखा नहीं भाई,
पर वरदान तुझे देता हूँ , सुख की राह बनाई।
—
श्राद्ध पक्ष जब जब आयेगा, खूब मान पायेगा,
सबसे पहले हलवा पूड़ी, को तू ही खायेगा।
खुश हुए वरदान पाकर वो, खुशियां खूब मनाई,
तब से श्राद्ध पक्ष में ऐसी, ये रीत चली आई।
— दयाराम मेठानी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
खोली पोथी तब ब्रह्मा ने, देखा अनर्थ भारी,
भूल गया सुख देना इसको, गलती मेरी सारी।
ब्रह्मा बोला तेरे हिस्से, सुख लिखा नहीं भाई,
पर वरदान तुझे देता हूँ , सुख की राह बनाई।// कौए की कथा के माध्यम से चित्रानुकूल बहुत अच्छा सृजन किया है आपने..हार्दिक बधाई आदरणीय मथानी जी
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