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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार  सड़सठवाँ आयोजन है.

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

18 नवम्बर 2016 दिन शुक्रवार से 19 नवम्बर 2016 दिन शनिवार तक
इस बार पिछले कुछ अंकों से बन गयी परिपाटी की तरह ही दोहा छन्द तो है ही, इसके साथ उल्लाला छन्द को रखा गया है. - 

दोहा छन्द और उल्लाला छन्द

यह देखना तथा जानना रोचक होगा, उल्लाला छन्द दोहा छन्द के कितने निकट है ! 

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.

इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है. 

प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.  

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

दोहा छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

  

उल्लाला छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 18 नवम्बर 2016 दिन शुक्रवार से 19 नवम्बर 2016 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  5. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  6. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  7. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष :

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आद० समर भाई जी ,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ आपको छंद पसंद आये मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आप जैसी ग़ज़ल अभ्यासी रचनाकार द्वारा शुद्ध छन्द का निर्वहन चकित कर देता है. किन्तु, आपके बारे में इसी तथ्य को उलट कर कहा जा सकता है. कि, आप जैसी सिद्धहस्त छन्दकार द्वारा ग़ज़लों में सहज प्रस्तुतियाँ मुग्ध कर देती हैं ! 

जय हो.. 

अभी-अभी आदरणीय अशोक रक्ताले भाई की रचना पर तुकान्तता को लेकर कुछ तथ्यात्मक बातें कर रहा था. आपकी रचना में भी ऐसी ही किसी ’अशुद्धता’ की उम्मीद थी. क्योंकि आप अव्वल तो ग़ज़लकार हैं. लेकिन मजाल जो इन विन्दुओं के सापेक्ष आपकी कलम तनिक भी डगमगायी हो !  वाह-वाह !!

आपके शुद्ध रचनाकर्म के लिए हृदयतल से बधाई और अशेष शुभकामनाएँ.. 

शुभ-शुभ

आद० सौरभ जी आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ तथा अपने लेखन कर्म के प्रति आश्वस्त भी हुई आपको छंद पसंद आये मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से आभार आपका | 

बातें सभी पसन्द हैं,सुन्दर-सुन्दर छ्न्द हैं
खिला चित्र का भाव है, इनको पढ़ना चाव है।

सादर हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश दीदी!

आद० सतविन्द्र भैया ,आपको छंद पसंद आये मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से आभार आपका | आपकी सुंदर छंदात्मक प्रतिक्रिया के समक्ष नमन .

आदरणीया राजेश दीदी, आपने बहुत शानदार उल्लाला छंद कहे है. सभी छंद एक से बढ़कर एक है. इस चित्र की जान है बच्चों की पोशाक जो अलग अलग मज़हब को दर्शाती है आपकी पारखी नज़र ने तभी तो ये पंक्ति कहलवाई- //अलग  धर्म के नूर हैं,भेदभाव से दूर हैं|//

इस शानदार प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई.

मिथिलेश भैया ,आपको छंद पसंद आये मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ दिल से आभार आपका | आपने सही कहा इस चित्र में बच्चों की पोशाक बहुत कुछ कहती है जिस पर लिखना आवश्यक था |

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, 

 

             उल्लाला छंद में आपकी यह रचना बहुत ही सुन्दर है इसकी जितनी प्रसंशा की जाय उतनी कम है  प्रस्तुति के  भाव और शिल्प दोनों उत्कृष्ट है  ढेरों बधाई स्वीकार करें आदरणीया 

ढूँढ रहा मानव यहाँ , खोया बचपन है कहाँ|                      

उलझ गया जो नेट में, मूवी गेम, क्रिकेट में||  .....  सुन्दर और सटीक  

सादर 

आद० सत्यनारायण जी ,आपको छंद पसंद आये मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया दिल से बहुत बहुत आभार आपका |

तीन खिलाड़ी व्यस्त हैं ,अपनी धुन में मस्त हैं|

धूप पसीना झेलते ,गुल्ली डंडा खेलते||...............वाह ! बहुत खूबसूरती से चित्र परिभाषित हो रहा है इस छंद में.

अलग  धर्म के नूर हैं,भेदभाव से दूर हैं|

मुख पर कोई छल नहीं,पैरों में चप्पल नहीं|| ............वाह ! वाह ! ये नजर भी खूब है.

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रदत्त चित्र पर बहुत ही सुंदर उल्लाला छंद हुए हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

 

आद० अशोक रक्ताले जी ,छंदों  पर आपकी सराहना मिली मेरा लेखन कर्म सफल हो गया दिल से बहुत बहुत आभार आपका |

गीत रचना (उल्लाला छंद में)

मुखड़ा

धर्म जाति को भूलते, सभी साथ में खेलते 

हरी भरी जब छाँव हो, या अपना ही गाँव हो,

धरती माँ की गोद में, खेले सभी विनोद में |

रहें जीत की कामना, ह्रदय खेल की भावना,

गुल्ली डंडा खेलते, कभी चोट भी झेलते |

धर्म जाति को भूलते, सभी साथ में खेलते

 

मन में रख विश्वास जो, होते नहीं हताश वो,

रहे खेल की भावना, ह्रदय जीत की भावना |

प्यार झलकता खेल में, सब बच्चो के मेल में,

धूप पसीना झेलते, दण्ड-बैठक जब पेलते,  |

धर्म जाति को भूलते, सभी साथ में खेलते

जात-पात अद्रश्य हो, सद्भावों का द्रश्य हो

वैर भाव रखते नहीं, मिले हार जलते नहीं |

भेद न राम रहीम में, सक्षम और यतीम में,

हार सभी स्वीकारते, गुस्सा नहीं उढ़ेलते

धर्म जाति को भूलते, सभी साथ में खेलते

- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -

(मौलिक व अप्रकाशित)

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