आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार उन्हत्तरवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
20 जनवरी 2017 दिन शुक्रवार से 21 जनवरी 2017 दिन शनिवार तक
इस बार उल्लाला छन्द तो है ही, इसके साथ रोला छन्द को रखा गया है. -
उल्लाला छन्द, रोला छन्द
यह जानना रोचक होगा, रोला छन्द दोहा छन्द के कितने निकट और कितने दूर है !
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.
इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है.
प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
उल्लाला छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
रोला छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 20 जनवरी 2017 दिन शुक्रवार से 21 जनवरी 2017 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
विशेष :
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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Replies are closed for this discussion.
आदरणीय सतविन्द्र जी प्रस्तुति पर आपकी काव्यात्मक टिप्पणी से अभिभूत हूँ. सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु सादर धन्यवाद
आदरणीय सुरेश कुमार जी प्रस्तुति पर उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
आदरणीय सत्य नारायण भाई , चित्र को बयाँ करता उल्लाला गीत बहुत अच्छा रचा है आपने । हार्दिक बधाइयाँ ।
लय के हिसाब से --
नन्ही चिड़िया छू रही , कहना सही रहेगा ,
आपकी सराहना से आत्मिक प्रसन्नता हुई हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी
लय के हिसाब से --
नन्ही चिड़िया छू रही , कहना सही रहेगा ..... जी आदरणीय आपकी बात से सहमत हूँ.
किन्तु
उल्लाला छंद विधान अंतर्गत निम्न विन्यास को ध्यान में रखकर ४ ४ ३ २ नुसार पंक्ति लिखी है
ख) अर्थात, सभी चरणों में 4-4-3-2 या 3-3-2-3-2 का विन्यास मान्य है.
अतएव आप से इस सन्दर्भ में मार्गदर्शन अपेक्षित है
आद० सत्यनारायण जी ,रोला छंद में उल्लाला की टेक लेकर सुंदर गीत रचा है जिसके लिए हार्दिक बधाई .कहीं कहीं टंकण त्रुटी खटक रही हैं देख लीजियेगा
रही छू को छू रही कर लीजिये -----आश और विश्वाश,=आस और विश्वास
गगन की ओर सिधारा---- गगन की ओर निहारा ----मेरे विचार से ठीक रहेगा
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर
मेरे इस प्रयास को सराहने के साथ साथ त्रुटियों की ओर ध्यान आकृष्ट करने हेतु आपका आभारी हूँ. प्रस्तुति पर आपका परामर्श उचित एवं विचारणीय है आदरणीया सादर धन्यवाद
आदरणीया सीमा जी रचना की सराहना हेतु ह्रदय तल से आभार
आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी, उल्लाला छंद की टेक लेकर रोला छंद में बहुत बढ़िया गीत लिखा है आपने.
आँधी या तूफान हो, जारी रखें तलाश को
नन्ही चिड़िया रही छू, देख आज आकाश को॥....................... संभवतः 'छू रही' है यह. बढ़िया मुखड़ा
हुआ उदित नव सूर्य, रश्मि स्वर्णिम नभ छायी
आश और विश्वाश, लिए नव ऊषा आयी................. 'विश्वास' सही शब्द है. वैसे आशा को आश की बजाय आस ही कह दिया जाए.
उड़ते नभ खग वृन्द, करें इंगित इस जग को
छू अनंत उड़ व्योम, चाहना हो यह मन को............. जग और मन की तुकांतता?
आँधी या तूफान हो, जारी रखें तलाश को
नन्ही चिड़िया रही छू, देख आज आकाश को॥ ............... बहुत खूब
झिलमिल झिलमिल रूप, भोर का मन को मोहे
प्राची के शुभ भाल, मेघ भस्मीले सोहे
आँचल में उत्साह, भोर नित बांटे सब को
जोश उड़ाता होश, लला का है इक पल को.................. सब और पल की तुकांतता ?
आँधी या तूफान हो, जारी रखें तलाश को
नन्ही चिड़िया रही छू, देख आज आकाश को॥ .................... बढ़िया शब्द मिले है चित्र को.
साहस औ विश्वास, पंख का लिए सहारा
मन पंक्षी ने आज, गगन की ओर सिधारा
झांके अम्बर नील, हटा मतवारे घन को
आँक रहा सामर्थ्य, लला के अविचल मन को............ वाह वाह क्या ही खूब बंद हुआ है. दिल से बधाई इस बंद पर
आँधी या तूफान हो, जारी रखें तलाश को......................... बहुत बढ़िया
नन्ही चिड़िया रही छू, देख आज आकाश को॥
आपने चित्र को बहुत सूक्ष्मता देख कर मूल भाव के सापेक्ष शाब्दिक किया है. इस हेतु दिल से बधाई स्वीकारें. सादर
आदरणीय मिथिलेश जी प्रस्तुति पर विस्तृत समीक्षा, सराहना एवं मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार
सच कहूं आदरणीय रचना को उचित समय नहीं दे सका जल्दबाजी में कुछ त्रुटियाँ अवश्य हुई है जिनकी ओर आपने इंगित किया है उन त्रुटियों को दूर करने का प्रयत्न करूंगा.
सादर धन्यवाद आदरणीय
मेरे कहे को मान देने के लिए आभार आपका आदरणीय
पिछली प्रतिक्रिया में इस संबध में निवेदन किया है. कृपया देखिएगा. सादर
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