चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -१४ '
नमस्कार दोस्तों !
इस बार की चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता’ अंक-१४ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है | सदियों से मनोरंजन के एक साधन के रूप में प्रयोग किये जाने के साथ-साथ कठपुतलियों के माध्यम से समाजोपयोगी व सार्थक सन्देश भी जन-जन तक पहुँचाये जाते रहे हैं |
साथियों ! इस बार जो चित्र प्रतियोगिता के लिए चयनित किया गया है उसमें इन कठपुलियों से खेलते हुए इस बच्चे की उत्सुकता बहुत कुछ कह रही है, वैसे तो यह एक सामान्य चित्र ही प्रतीत हो रहा है परन्तु यदि इसे कुछ अलग नज़रिए से देखा जाय तो यहाँ पर कठपुतलियाँ मात्र कठपुतलियाँ ही नहीं बल्कि भगवान के हाथ में इंसान की डोर का प्रतीक भी हैं और बच्चे तो भगवान का ही एक रूप हैं |
आँखों में सपने लिए, बाल रूप में भोर.
ईश्वर के आधीन जग, उसके हाथों डोर..
आइये तो उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. पुनः आपको स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी, कृपया इस प्रतियोगिता में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |
साथ-साथ इस प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र की भी व्यवस्था की गयी है ....जिसका विवरण निम्नलिखित है :-
"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता हेतु कुल तीन पुरस्कार
प्रथम पुरस्कार रूपये १००१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company
द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company
तृतीय पुरस्कार रुपये २५१
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala
A leading publishing House
नोट :-
(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |
(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें |
विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१४, दिनांक १८ मई से २० मई की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव
Tags:
Replies are closed for this discussion.
कवि लिखता है डूब के , पाठक समझे भाव
क्या होता है शिल्प कहो, गहरे हों जब घाव
सादर आभारी हूँ आपका भाई विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी
सुझाव के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद आपका
सादर वन्दे
इतराता क्यूँ आदमी, अपनी छवी निहार ||
कठपुतली सा नाचता , मन में लिये विकार ||५||
कठपुलती देखे नहीं , क्या मीठा क्या खार ||
भूला बैठा आदमी , इस जीवन का सार ||७||
वाह बहुत ही सुंदर दोहे संदीप जी बधाई आपको
सादर नमन महिमा श्री जी
इस उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार
अपना स्नेह औ आशीष बनाये रखिये
जगमग खूब जलाए हैं दस दोहों के दीप
हर दोहा दर्शन भरा , वाह ! वाह ! संदीप .
मिली प्रसंशा आपसे, हुआ लेख साकार
कविवर छोटे भाई का , नमन करो स्वीकार
दोहों में सुधार कर रहा हूँ आशा है की आप सभी को पसंद आयेंगे सम्पादक महोदय से आग्रह है की सुधार देख के इन पर कृपा करें
कठपुतली को देख के, बालक करे विचार ||
नाचे कैसे काठ ये , कौन खींचता तार ||१||
नाचे ऐसे झूम के, ठुमके मारे चार ||
मन बेचारा बाबरा, रम जाये हर बार ||२||
ये तन लगता काठ का, डोरी मन का तार ||
कठपुतली है आदमी , नचा रहे करतार ||3||
नचा रहा है हाथ से, विस्मित है संसार ||
हरि हाथों से नाचते , मन का बांधे तार ||४||
इतराता क्यूँ आदमी, अपना रूप निहार ||
कठपुतली सा नाचता , मन में लिये विकार ||५|
कठपुतली का खेल सा,. नर नारी परिवार ||
ब्याह रचाके ईश ने , मिलन किया साकार ||६||
कठपुलती चखती नहीं, कैसा मीठा खार ||
भूला बैठा आदमी , इस जीवन का सार ||७||
कठपुतली बोले नहीं , कभी नमाने हार ||
हर मौसम में नाचती , गरमी शीत बहार ||८||
कठपुतली के नाच सा, मानव का संसार ||
मन ही तन की डोर है, लाये विषय विकार ||९||
इस टी वी के दौर में, कठपुतली बेकार ||
मिलके सब हैं देखते, सास बहू का प्यार ||१०||
(प्रतियोगिता से अलग)
कुंडलिया छंद (दोहा +रोला =कुंडलिया )
कैसी चिंता में पड़े, क्योंकर हुए उदास?
दिन भर तोड़े हाड़ पर, नहीं कमाई पास.
नहीं कमाई पास, डोर जो अपने पल्ले.
मेहनत की भरपूर, नहीं पर बल्ले-बल्ले.
‘अम्बरीष’ है डोर, राम के हाथों जैसी.
वैसी होगी भोर, भूख की चिंता कैसी??
-- अम्बरीष श्रीवास्तव
राम भरोसे हो चले, मिलना ही है राह
करम कराएँ राम जी, जैसी भी हो चाह
जैसी भी हो चाह, नाचती माटी वैसे
राम पकड़ के डोर, नचाते जैसे जैसे
"दीप" लगा के जिया, करो जब आपने काम
बिगड़ेंगे ना कभी , साथ तभी तेरे राम ......................
बहुत सुन्दर लिखी है सर जी
धन्यवाद है आपको, हर्षित सारे संत.
रोले का भाई मेरे, गुरु से होता अंत..
राम भरोसे हो चले, मिलना ही है राह
करम कराएँ राम जी, जैसी भी हो चाह
जैसी भी हो चाह, नाचती माटी वैसे
राम पकड़ के डोर, नचाते जैसे जैसे
"दीप" लगा के जीय, करो जब काम खुदीसे
बिगड़ेंगे ना काम , रहो तुम राम भरोसे
"दीप" लगा के जीय, करो जब काम खुदीसे
बिगड़ेंगे ना काम , रहो तुम राम भरोसे...nice
बहुत बहुत धन्यवाद आपका श्रीमान अविनाश जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |