My dear friends:
वन्दे मातरम!
My heartfelt welcome to each of you.
This is the first post on आध्यातमिक चिंतन.It is my pleasure to present some thoughts here.
On purpose, I have touched several areas in the following write-up, in order to
create ample food-for-thought at this stage of our meeting here. These different
areas, highlighted in bold below, in themselves are so exhaustive that each can
have a treatise of its own.
Hopefully, depending on the interest of our members, we will have many lively
discussions on BOLDS in the months and years to come, and we will grow
together. In the process, I will have a lot to learn from each of you, and please, this
is not an understatement, for very humbly I say, I do have a lot to learn.
This being the first post, I am starting with the concepts of spirituality gifted by
India to the world. Dear friends, I am humbled and grateful to God that he gave me
birth in my beloved India, whose concepts of spirituality, if practiced, have so
much to offer to any seeker of inner peace. Here, the key is "if practiced", for, the
greatest Truth cannot reveal itself by any knowledge limited to its theory alone.
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आदरणीय विजय निकोर जी,
सादर प्रणाम!
आध्यात्म हमारी आधार शिला है, इस विषय पर समुच्चय में काफी सारे महत्वपूर्ण बिन्दुओं को प्रस्तुत करती हुई इस प्रथम चर्चा के लिए आपका हार्दिक आभार..
यह विषय क्या है, सच्चाई क्या है इसे दूर खड़े देखा सुना पढ़ा जाना एक बिंदु है, तथा इस मार्ग पर चल कर इसे आत्मसात कर आगे बढ़ना एक अलग.
जिस तरह तैराकी सीखने के लिए पानी में उतरना ही पढता है, कोई आलेख या व्याख्यान तैराकी नहीं सिखा सकता, जिस तरह सायकिल चालाने के लिए उस पर बैठ कर पेंडल खुद ही चलाना होता है और हेंडल भी खुद ही सम्हालना होता है, उसे सिर्फ पढ़ कर या देख कर नहीं सीखा जा सकता, उसी तरह आध्यात्म को समझने के लिए भी अनंत के सागर में उतरना पढता है.
यही इसकी विशिष्टता है, कुंजी है, राह है.....
अपनी समझ भर अभी के लिए इतना ही कहना है,
सादर.
आदरणीया प्राची जी:
आपने कहा, " अपनी समझ भर अभी के लिए इतना ही कहना है " ... आपने जो कहा,
उसी में ही चिंतन के लिए बहुत कुछ है।
आपका सह्रदय आभार।
सादर और प्रणाम सहित,
विजय
अच्छा लगा, आपको आपके उपरोक्त उद्गार के साथ आदरणीय विजय निकोर जी.
सारा कुछ जो ’है’ लेकिन ’है नहीं’ के प्रति वैयक्तिक ऊहापोह या उसके प्रति जिज्ञासा या एकदम से अन्यमनस्कता इतनी विशिष्ट क्यों है ? अनुभूतियाँ इतनी अलग-अलग क्यों हैं ? हम इन विन्दुओं पर भी चर्चा कर कुछ समझने का प्रयास करें.
सादर
आदरणीय भाईसाहब..सादर प्रणाम.
अध्यात्म रोचक शब्द है.सामान्यतया भक्ति या ईश्वर विषयक चर्चा को अध्यात्म कहा जाता है.परन्तु वास्तव में अध्यात्म का अर्थ स्वयं का अध्यन अधार्थ.. अपनी आत्मा का अध्यन करना है.....जेसे मिटटी के पिंड में सब प्रकार के आकर विद्यमान रहते है,कुम्हार को सिर्फ अतिरिक्त मिटटी हटानी होती है और मनचाहा आकर प्रकट हो जाता है .इसी तरह मूर्तिकार सिर्फ अतिरिक्त पत्थर काटकर अलग करता है,शेष पत्थर छोड़ देता है ओर पाषाण में छिपा आकर प्रकट हो जाता है,मूर्ति का जेसा आकर वह व्यक्त करना चाहे कर सकता है.इसी तरह हमारे जीवन को आकार हम ही हमारे कर्मो द्वारा प्रदान करते है यानि हम ही मिटटी के पिंड भी है,कुम्हार भी ,पाषाण भी ओर मूर्तिकार भी ..हमारे जीवन का सब कुछ हमारे कर्मो पर आधारित है.जब हम कर्म के ही अधीन है तो बहुत सोच-विचार कर और सत्कर्म ही करना श्रेयकर है.
सादर
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