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"नारी शिक्षा "
नर ही प्रमुख नहीं है यारों , नारी भी कुछ है जग में |
पुरुष हमेशा रहता अधूरा , यदि न हो नारी संग में ||
उसे क्यों वंचित करते हो तुम ,जीवन के अधिकारों से |
नहीं बनेगा काम ये केवल ,नारी शिक्षा के नारों से ||
कार्य क्षेत्र नहीं है उनका ,केवल चार दीवारी में |
लगा देते क्यों अल्पायु ही ,उसे ग्रहस्ति की गाड़ी में ||
फँसी हुई हे आज वो नारी ,रूढ़ि वादी विचारों में |
कहाँ चलती है उस बैचारी तूती की नक्कारों में ||
नारी इस क्रूर समाज में , ममता की इक मूरत है|
कितानें अत्याचार सहे है ,इस भोली सी सूरत ने ||
माँ,बहिन ,पत्नी और बेटी , बनकर के वह आती है |
सहकर ज़ुल्म हर रूप में वह ,त्याग ही कर जाती है|
शिक्षित होगी यदि नारी तो , जागरूकता भी आएगी|
स्वावलम्बि बन इस समाज में, सम्मान वह भी पाएगी ||
आज के परिवेश में बहुत है ,नारी शिक्षा तो ज़रूरी |
बालिका शिक्षा में ज़रा भी ,करना न अब देरी ||
'मौलिक एवं अप्रकाशित '
चौथमल जैन
'' एक प्रश्न ''
चिड़ियाँ ची-ची करती क्यों ?
चुन -चुन तिनके लाती क्यों ?
उनसे निड बनाती क्यों ?
निड में अण्डे देती क्यों ?
देती तो फिर सेती क्यों ?
चोंच में दानें लाती क्यों ?
बच्चों को खिलती क्यों ?
उड़ाना भी सिखलाती क्यों ?
सिख गगन में उड़ना बच्चें |
- छोड़ उसे उड़ जाते क्यों ?
कर्तव्य प्रथम इस जीवन का है ,
मात -पिता की सेवा करना।
आशीर्वाद उन्हीं का लेकर ,
जीवन पथ पर आगे बढ़ना।।
कर्तव्य दूसरा जगती पर है ,
मानवता की रक्षा करना।
दया धर्म का भाव सदा ही ,
अपने से छोटों पर रखना।।
कर्तव्य तीसरा यही हमारा ,
देश धर्म के लिये ही जीना।
बलिदानों के पथ पर बढ़कर ,
मातृ -भूमि की सेवा करना।।
"मौलिक व अप्रकाशित "
Posted on July 7, 2017 at 10:11pm — 3 Comments
एक पुरानी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ ,इस रचना का जन्म उस समय हुआ जब कारगिल में युद्ध चल रहा था |
" एक कवि की पाती वीर जवानों के नाम "
देश के वीर जवानों प्यारे , मेरी पाती नाम तुम्हारे |
नहीं पहुँचती कलाम ये मेरी , वहाँ खड़ी बन्दूक तुम्हारी ||
नहीं लिखी है ये शाही से , लिखी गई है जिगर लहू से |
जमी हमारी है ये थाती , हो इस दीपक की तुम बाती ||
देश के दुश्मन आए तो , खून उनका तुम बहा देना |
गोली आए दुश्मन की तो , छाती मेरी भी ले लेना ||
कतरा-कतरा…
Posted on February 10, 2014 at 11:30pm — 6 Comments
परिश्रम है पारस पत्थर , जीवन को सोना बनाता है।
मेहनत करता जो जीवन में, सबकुछ वह पा जाता है।।
परिश्रम से एक ही पल में ,भाग्य दास बन जाता है।
लक्ष्मी उसके चरण है छूती ,जो मेहनत की खाता है।।
परिश्रम के बल पे टिकी है ,ये दुनियाँ तो सारी।
मेहनत से जिसने आँख चुराई ,ठोंकर उसने खाई।।
गीता के उपदेश ने भी तो ,कर्म की रीत सिखाई।
पाया उसने सभी है जिसने ,कर्म से प्रीत लगाई।।
मेहनत जो भी करता है वो , दुःख नहीं कभी पाता है।
पत्थर खाये यदि मेहनती ,वो भी हजम कर…
Posted on February 6, 2014 at 3:00am — 3 Comments
"स्वार्थ और प्यार "
मानव बिकाऊ है जमी पर , मानवता की आड़ में।
ईमान बिकता है यहाँ पर , धर्म जाए भाड़ में ।।
भ्रष्टाचार का खू लगा है ,हर मानव की दाड़ में।
ऐसा बिगाड़ा इंसा जैसे ,बच्चा बिगड़ता लाड़ में।।
स्वार्थ की खातिर बेचा देश , दुनियाँ के बाजार में।
वतन किया नीलाम देखो ,मानव के सरदार ने।।
प्यार कभी न बजता यारों ,खुदगर्जी के साज में।
और कभी न स्वार्थ टिकता ,दिलबर के दरबार में।।
इन दोनों का साथ तो जैसे ,जल पावक के साथ…
Posted on January 14, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
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