For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'
Share on Facebook MySpace

प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप''s Groups

 

प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप''s Page

Profile Information

Gender
Male
City State
भुज, गुजरात
Native Place
सिमरिया,

प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप''s Blog

बेइंतहा  जिन्हें   हम,    दिन    रात    चाहते   हैं (ग़ज़ल)

मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन 

वो    प्यार    का    हमारे,    इस्बात    चाहते    हैं।

बेइंतहा  जिन्हें   हम,    दिन    रात    चाहते   हैं।।

होकर     खड़े      हुए    हैं,    बेदार    सरहदों    पर,

जो    अम्न-ओ-चैन   वाले,   हालात   चाहते   हैं।।…

Continue

Posted on February 26, 2018 at 11:00pm — 9 Comments

मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर  सका  नहीं (ग़ज़ल)

मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन

बिसात-ए-गैर क्या है जब, नदीम कर सका नहीं।

मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर  सका  नहीं।।

अदीब से हुए  नहीं  कुछ  एक  काम  आज  तक,

असीर कर  गया  जिसे  फ़हीम  कर सका नहीं।।

लिखीं  पढ़ीं   भले  कई,  कहानियाँ  ज़हान   की,

मगर क़सूर क्या रहा  अज़ीम कर  सका  नहीं।।

मिलान चश्म, चश्म और, क़ल्ब, क़ल्ब का हुआ,

कमाल जो हुआ कभी कलीम …

Continue

Posted on February 25, 2018 at 11:11pm — 7 Comments

जब  उठी उनकी नज़र (चार कवाफ़ी के साथ ग़ज़ल)

अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन  

जब  उठी  उनकी   नज़र,  इफ़रात   घर  जलने  लगे।

ख़ुद नहीं हमको  ख़बर, किस  बात  पर  मरने  लगे।।



आपकी   काबिल   मुहब्बत,   सीख   हमको   दे  गई,

राह  में   आईं   अगर,   आफा़त   हर   सहने   लगे।।



यह ज़मीं ज़न्नत नज़र आएगी इक दिन खुद-ब-खुद,

बाप-माँ  की  हर  बशर  ख़िदमात  गर  करने  लगे।।



मिल गई इक  बार  अब  नुसरत  उसे  फिर  से  वहाँ,

आजकल  वो  ज़र  जिधर  ख़ैरात  कर  चलने…

Continue

Posted on February 22, 2018 at 11:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल: जो भी बनकर हबीब आता है

*[बहर-ए-खफ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून]*



*2122 1212 22*



बन के मेरा हबीब आता है।

जो भी दिल के करीब आता है।।



सबकी तकदीर में लिखा है सब,

कौन बनने गरीब आता है।।



खून मेरा उबलने है लगता,

रू-ब-रू जब रकीब आता है।।



कद्र भाई की है नहीं जिसको,

वही लेकर ज़रीब आता है।।



आजकल हो गया उसे है क्या,

बन के हरदम अजीब आता है।।



हौसले देखकर हमारे अब

पढ़ने खुतबा ख़तीब आता है।।



'दीप' अब ऐतबार है किसका

काम… Continue

Posted on January 30, 2018 at 2:48pm — 11 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service