मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
वो प्यार का हमारे, इस्बात चाहते हैं।
बेइंतहा जिन्हें हम, दिन रात चाहते हैं।।
होकर खड़े हुए हैं, बेदार सरहदों पर,
जो अम्न-ओ-चैन वाले, हालात चाहते हैं।।
सरहद पे पासवाँ के, देखो कभी हवासिल,
बस आप तो सियासी, जज़्बात चाहते हैं।।
ख़ुद चल दिए न जाने, क्यों छोड़ कर हमें वो,
रखना जिन्हें हम अपने, आरात चाहते हैं।।
अपनी ख़ुशी, है अपनी, ग़म गैर का पराया,
ज़र ज़िंदगी में इन्शाँ, इफ़रात चाहते हैं।।
कल पहले अज़ अज़ल ही, कर डाला क़त्ल-ए-दुख्तर,
अब्ना की आज क़ातिल, बारात चाहते हैं।।
है 'दीप' इस तरह कुछ, उस बज़्म की कहानी,
अश्आर इश्क़ वाले, हज़रात चाहते हैं।।
-प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
छटे शैर 'अज़' शब्द का इस्तेमाल वहाँ किया जाता है जहाँ इज़ाफ़त ज़ेर के रूप में नहीं लग सकती ।
'कल पहले अज़ अजल ही कर डाला क़त्ल-ए-दुख़्तर'
इस मिस्रेको यूँ कर सकते हैं :-
'कल मौत से ही पहले कर डाला क़त्ल-ए-दुख़्तर'
सुंदर गजल...
ग़ज़ल में शिरकत के लिये शुक्रिया जनाब नरेंद्र साहिब एवं जनाब राम अवध साहिब।
बेहद शुक्रिया जनाब हर्ष महाजन साहिब।
ज़नाब समर साहिब! ग़ज़ल में शिरकत के लिए शुक्रिया।
हवासिल, हौसला का बहुवचन है।
आरात का अर्थ निकट या पास होता है।
इंसाँ से ही अर्थ लिया गया है।
अब्ना का अर्थ बेटों मतलब पुत्रों से लिया गया है।
उला में जो व्याकरणिक दोष है उस पर भी एक बार नज़रे इनायत कर दीजिये, मेहरबानी होगी।
जनाब 'दीप' साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
तीसरे शैर में 'हवासिल' का क्या अर्थ लिया है?
4थे शैर में 'आरात' का अर्थ बताएं?
5वैं शैर में 'इनशा' क्या 'इंसां' है?
6ठे शैर के ऊला में व्याकरण दोष है,और इसके सानी में 'अब्ना' का क्या अर्थ लिया है?
अगली प्रतिक्रया आपके जवाब के बाद ।
आदर्णीय प्रदीपकुमार पाण्डे जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई।
लाजवाब
एक बेहतरीन पेशकश आदरणीय प्रदीप जी। दाद कबूल कीजियेगा ।
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