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प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप''s Blog (8)

बेइंतहा  जिन्हें   हम,    दिन    रात    चाहते   हैं (ग़ज़ल)

मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन 

वो    प्यार    का    हमारे,    इस्बात    चाहते    हैं।

बेइंतहा  जिन्हें   हम,    दिन    रात    चाहते   हैं।।

होकर     खड़े      हुए    हैं,    बेदार    सरहदों    पर,

जो    अम्न-ओ-चैन   वाले,   हालात   चाहते   हैं।।…

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Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 26, 2018 at 11:00pm — 9 Comments

मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर  सका  नहीं (ग़ज़ल)

मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन

बिसात-ए-गैर क्या है जब, नदीम कर सका नहीं।

मरीज़-ए-इश्क़ की दवा हकीम कर  सका  नहीं।।

अदीब से हुए  नहीं  कुछ  एक  काम  आज  तक,

असीर कर  गया  जिसे  फ़हीम  कर सका नहीं।।

लिखीं  पढ़ीं   भले  कई,  कहानियाँ  ज़हान   की,

मगर क़सूर क्या रहा  अज़ीम कर  सका  नहीं।।

मिलान चश्म, चश्म और, क़ल्ब, क़ल्ब का हुआ,

कमाल जो हुआ कभी कलीम …

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Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 25, 2018 at 11:11pm — 7 Comments

जब  उठी उनकी नज़र (चार कवाफ़ी के साथ ग़ज़ल)

अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन  

जब  उठी  उनकी   नज़र,  इफ़रात   घर  जलने  लगे।

ख़ुद नहीं हमको  ख़बर, किस  बात  पर  मरने  लगे।।



आपकी   काबिल   मुहब्बत,   सीख   हमको   दे  गई,

राह  में   आईं   अगर,   आफा़त   हर   सहने   लगे।।



यह ज़मीं ज़न्नत नज़र आएगी इक दिन खुद-ब-खुद,

बाप-माँ  की  हर  बशर  ख़िदमात  गर  करने  लगे।।



मिल गई इक  बार  अब  नुसरत  उसे  फिर  से  वहाँ,

आजकल  वो  ज़र  जिधर  ख़ैरात  कर  चलने…

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Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on February 22, 2018 at 11:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल: जो भी बनकर हबीब आता है

*[बहर-ए-खफ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून]*



*2122 1212 22*



बन के मेरा हबीब आता है।

जो भी दिल के करीब आता है।।



सबकी तकदीर में लिखा है सब,

कौन बनने गरीब आता है।।



खून मेरा उबलने है लगता,

रू-ब-रू जब रकीब आता है।।



कद्र भाई की है नहीं जिसको,

वही लेकर ज़रीब आता है।।



आजकल हो गया उसे है क्या,

बन के हरदम अजीब आता है।।



हौसले देखकर हमारे अब

पढ़ने खुतबा ख़तीब आता है।।



'दीप' अब ऐतबार है किसका

काम… Continue

Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on January 30, 2018 at 2:48pm — 11 Comments

जिंदगी तुझ पर ये दिल भी, कर गया कुर्बान क्यों?

बेखब़र क्यों हो गया तू?   हो  गया  अनजान  क्यों?

ज़िंदगी तुझ पर ये दिल भी, कर गया कुरबान क्यों?

बेबसी  कुछ  भी  नहीं  थी,  जिंदगी  के   दरमियाँ,

चार दिन का बन गया फिर, तू मिरा महमान क्यों?

पूछती   है  हाल …

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Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on December 1, 2017 at 8:30pm — 4 Comments

मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है

*1222 1222 1222 122*



ज़माना फिर न जाने क्यों ख़फ़ा होने लगा है।

मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है।।



कभी वादे किये जिसने कसम खाकर ख़ुदा की,

वही फिर अब न जाने क्यों ज़ुदा होने लगा है।।



वहाँ पर हाल कैसा है, वही बस जान पाया,

यहाँ पर ज़ख़्म, ज़ख़्मों की दवा होने लगा है।।



समझ बैठा था' तुमको मैं, मुहब्बत का समंदर,

गुमाँ मेरा यहाँ आकर, रफ़ा होने लगा है।।



मुहब्बत का हमेशा ही यही अंज़ाम होता,

शमा से…

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Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 17, 2017 at 5:30pm — 14 Comments

दिल धड़कता था जिस अजनबी के लिए

*212 212 212 212*



हो गया ख़ास वह, ज़िंदगी के लिए।

दिल धड़कता था' जिस, अज़नबी के लिए।।



दूर तुम से रहा, आज तक मैं सनम,

हूँ ख़तावार उस, बेबसी के लिए।।



जान देकर तुझे, जान जाता अगर,

जान जीता नहीं, मयकशी के लिए।।



देख चहरा तिरा, चाँद शरमा गया,

बन गई शम'अ तू, तीरगी के लिए।।



मुझको' रब की कई, नेमतें मिल गईं,

सर झुकाया सदा, बंदगी के लिए।।



बिन तिरे एक पल, मुझको' जीना नहीं,

दिलनशीं चाहिए, दिल्लगी के… Continue

Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 15, 2017 at 3:34pm — 17 Comments

न बदले गर ये हालात

*1222 1221



न बदले गर ये' हालात।

फिर आ जायेगी बरसात।।



भले ही कुछ दिनों बाद

मगर होगी करामात।।



तुम आशिक हो ही' बदनाम

दिखा दी अपनी' औकात।।



मुझे कोई न इतराज़

कभी कर लो मुलाकात।।



करूँ कैसे अब इतिबार,

तुम आये हो अकस्मात।।



किसी से कुछ न अब उम्मीद,

सुनो मेरे खयालात​।।



फ़ना तुझपे दिलो जान

करूँ तो फिर बने बात।।



ज़वानी जोश में आज

न कर बैठे कुछ उत्पात।।



नहीं है 'दीप'… Continue

Added by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 11, 2017 at 10:50pm — 4 Comments

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