For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है

*1222 1222 1222 122*

ज़माना फिर न जाने क्यों ख़फ़ा होने लगा है।

मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है।।


कभी वादे किये जिसने कसम खाकर ख़ुदा की,

वही फिर अब न जाने क्यों ज़ुदा होने लगा है।।


वहाँ पर हाल कैसा है, वही बस जान पाया,

यहाँ पर ज़ख़्म, ज़ख़्मों की दवा होने लगा है।।


समझ बैठा था' तुमको मैं, मुहब्बत का समंदर,

गुमाँ मेरा यहाँ आकर, रफ़ा होने लगा है।।


मुहब्बत का हमेशा ही यही अंज़ाम होता,

शमा से मिल के' परवाना फ़ना होने लगा है।।


नज़र से पीने' का पहले, मज़ा दिलकश लगा था,

मगर अब ज़ाम पीने का, जिया होने लगा है।।


यहाँ पर 'दीप' का तो है, वही अंदाज़ कायम,

वहाँ हर शख़्स अब शायद, ख़ुदा होने लगा है।।



-प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 715

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on December 1, 2017 at 10:26pm
बिल्कुल, समय मिलते ही इन्हें दुरुस्त करूँगा।
Comment by Samar kabeer on December 1, 2017 at 9:04pm
तो,इन मिसरों को पटल पर दुरुस्त कर लीजिये न?
Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on December 1, 2017 at 8:45pm

जनाब समर कबीर साहिब!

सलाह देने के लिए शुक्रिया. बिलकुल सही कहा अपने रब्त नहीं है. क्योकि मुझे भी यह मिसरे पढने में समस्या हो रही है.

Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on December 1, 2017 at 8:43pm

आद०  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' 

तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on December 1, 2017 at 8:42pm

आद० बासुदेव अग्रवाल 'नमन' दादा जी,

बहुत बहुत धन्यवाद.

Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on December 1, 2017 at 8:41pm

मुहतरम शेख शहजाद उस्मानी साहिब. 

ग़ज़ल में शिरकत और हौसला आफजाई के लिए शुक्रिया

Comment by vijay nikore on November 23, 2017 at 11:26am

बहुत खूबसूरत एहसास । हार्दिक बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 21, 2017 at 12:56pm
वाह बहुतखूब ग़ज़ल हुई.. बधाई
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 20, 2017 at 8:39am
जनाब प्रदीप साहिब ,ग़ज़ल की अच्छी कोशिश की है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । मुहतरम समर साहिब की बातों पर गौर करें
Comment by Mohammed Arif on November 20, 2017 at 8:07am
ज़माना फिर न जाने क्यों ख़फ़ा होने लगा है।
मुहब्बत भी निभाना अब सज़ा होने लगा है।। वाह! वाह!! बहुत माक़ूल बात कही आपने । ज़माना तो सदियों से प्यार का शत्रु रहा है ।
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप कुमार पाण्डे जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service