वज़्न -1222 1222 1222 1222
ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड
मुक़ाबिल तुमको पाकर हो गई कितनी गुलाबी ठंड
तुम्हारी याद की इक गुनगुनी सी धूप के दम पर
सुखाए कितने ग़म हमने बिताई कितनी भारी ठंड
अलावों की न थी कोई कमी उसको मगर फिर भी
ज़मीं ने देखकर सूरज को ही अपनी गुज़ारी ठंड
तुम्हारे प्यार के धागों की मैंने शॉल जब ओढ़ी
लगी है तब मुझे सारे हसीं मौसम से प्यारी ठंड
मैं अक्सर सोचती हूंँ काश फिर…
ContinuePosted on December 11, 2022 at 9:41pm — 11 Comments
2122 2122 2122 212
मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप
शाम-सी मुझ में उदासी, सुब्ह के मंज़र-से आप
जाने कैसे मिलना होगा अपना इक मे'यार पर
मैं ज़मीं की ख़ाक-सी हूंँ चर्ख़ के मिम्बर-से आप
जो भी आया चल दिया वो मुझ से हो कर आप तक
मैं अधूरी रहगुज़र हूँ और मुकम्मल घर-से आप
क्यों पसंद आये किसी को भी कभी होना मेरा
मैं कि अनचाही सी बेड़ी क़ीमती ज़ेवर-से आप
आपके बिन इस जहांँ में कुछ…
ContinuePosted on December 8, 2022 at 6:00pm — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
अभी बस पर ही टूटे हैं अभी अंबर नहीं टूटा
परिंदा टूटा है बाहर अभी अंदर नहीं टूटा /1
सितारा यूंँ तो टूटा है मेरी तक़दीर का लेकिन
ख़ुदा का शुक्र है तदबीर का अख़्तर* नहीं टूटा /
हमारे ख़ैर ख़्वाहों ने बहुत चाहा मगर अब तक
हमारे दिल में है उम्मीद का जो घर नहीं टूटा /3
सियासत के सताने पर भी बोला जो हमेशा सच
वो जाने कैसी मिट्टी का है ज़र्रा भर नहीं टूटा /4
कई मख़्लूक़* की है ज़िंदगी…
ContinuePosted on December 6, 2022 at 10:13pm — 3 Comments
1212 1122 1212 22/112
हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़
तो हौसला रखो क्या हमसे भी बड़े हैं पहाड़ /1
है इनके दिल में नदी-सी बड़ी नमी लेकिन
मुग़ालता* है कि वालिद-से ही कड़े हैं पहाड़़/2
पहाड़ कह के कोई तंज़ गर करे इन पर
तो आबशार बने अश्क से झड़े हैं पहाड़ /3
पहाड़ जैसी मुसीबत उठा के हम यूंँ चले
कि हम को देखते ही शर्म से गड़े हैं पहाड़ /4
हम अपने पैर गँवा कर भी चढ़ गए इन पर
हमारे जैसे…
Posted on December 2, 2022 at 8:13pm — 6 Comments
I need to have a word privately, please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com) Thanks.
आदाब।.बहुत-मुबारकबाद और हार्दिक स्वागत आदरणीया अंजुमन 'आरज़ू' साहिबा। अब आपकी रचनायें अधिक सुविधा से पढ़ सकेंगे। गोष्ठियों में आपका इंतज़ार और स्वागत।
मुहतरमा अंजुमन साहिबा ओ बी ओ के मंच पर आप का स्वागत है। सादर।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |