जीवन में दुःख का बाल्यकाल से नाता है,
सोच रहा हूँ कैसा हमसे रिश्ता भाग्य विधाता है|
होठों पर मुस्कान भी खुशी से छाने दो,
क्यों दिल तोड़ मेघ बन रिश्ता दिखाता है|
जिए एस्ये कि कभी कोई फरियाद नही,
तिल तिल मर जीना कब सिखाता है!
हो सके तो दुनिया को भी तुम हंसाओ
हमे कोई कब दिल से यूँ अपनाता है!
दिया सा जलता दिल तेरी दुनिया में ,
कभी दीया खुद भी प्रकाश ले पाता है
दुःख का मेघ कब जाये ही कौन जाने.
लवो की सिमत ही ले तो जाता है!
पीड़ा लिखते साल बित गये मुझको ,
हमारा खुश जीवन से कोई नही नाता है .
बस पीड़ा ही लिखते लिखते भूल गयी,
तकदीर ख़ुशी के भी तो लिखना आता है!
मौलिक और अप्रकाशित।
निशा रानी
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