ये जो जिस्म है, क्या तिलिस्म है,
कुदरत की कैसी ये किस्म है?
मैं बहक गया, वो चहक गया,
मैं तो शोला था, सो दहक गया।…
ContinuePosted on November 3, 2011 at 3:50pm
तुमसे क्या उम्मीद करूँ, तुम दर्द बांटते रहते हो,
देश जले या लोग मरे, तुम माल काटते रहते हो!
तुम नेता हो, नवनिर्मित हो बस अपने सुख की सोचो तुम,…
ContinuePosted on September 28, 2011 at 4:01pm — 3 Comments
पेट बडा है, भूख बड़ी है,
लोभ भरा है, सोच सड़ी है।
…
Posted on September 27, 2011 at 1:06pm — 5 Comments
प्रभु! नभ-जल-थल में तुम्हारा गुणगान हो,
तुमसे छुपाऊँ क्यों, तुम सर्वव्यापिमान हो!
कैसे मैं कमाई करूँ, मुझे भी तो ज्ञान हो,
मेरी भी समस्या का कोई तो समाधान हो!
नियत, हैसियत प्रभु मेरी तुम जानो वैसे,
माल-असबाब यहाँ खा रहे है कैसे कैसे!
चौखट में आया तेरी, वादा चढ़ावे का ले…
Posted on September 21, 2011 at 1:30pm — 9 Comments
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धन्धे तुमने बदल दिए पर,
ठीए वहीं है, वो ही थड़ी है।
नेता जी ये ग़ाँठ बाँध लो,
मुँह छोटा पर बात बड़ी है।.......chhota muh magar bat bahut badi....nice one.
सत्ता के गलियारों में जहाँ धूम दिखावे की होती है,
आम आदमी में ये जंग बस रोटी के लिए होती है!...Subhash ji..very nicly said...wakai sthitiya aisi hi hai...
Hello...yaha to kuchh samajh nahi aa raha...aap hi raasta dikhaye janab....ak post kiya hai...:)