कई रोज से खाली पेट थी
संभाल न सकी भूख
पसीज कर
दया करूणा ने
दो रोटी दस रूपये में
इतना भरा उसका पेट
फिर नौ माह
फूला रहा
वो कुत्ता बिल्ली नहीं थी
बिना किसी एवज
भूख मिटा दी जाती
विक्षिप्त थी तो क्या
थी तो स्त्री…
Added by asha pandey ojha on January 13, 2015 at 8:30pm — 30 Comments
ग़ज़ल- 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)
किस सागर में जान मिलेगी धार समय की
कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की
मोल समय का उससे जाकर पूछो माधो
नासमझी में जिसने झेली मार समय की
जीवन नैया पार हुई बस उस केवट से
कसकर थामी जिसने भी पतवार समय की
आलस छोड़ो साहस धारो कर्म करो तुम
उठ जाओ अब सुनकर तुम फटकार समय की
कद्र तुम्हारी ये संसार करेगा उस दिन
कद्र करोगे जिस दिन बरखुर्दार…
ContinueAdded by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 3:30pm — 19 Comments
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