यह तेरी अर्जी है
या फिर खुदगर्जी है
सिल ही देंगी गम को
सांसे भी दर्जी है
मैं तुम से रूठा हूँ
तुहमत ये फर्जी है
दिल मेरा है सोना
बहता गम बुर्जी है
गर्दिश, ग़ज़लें, गश्ती
यह मेरी मर्जी है
~अमितेष
("मौलिक व अप्रकाशित")
Added by अमि तेष on January 26, 2013 at 1:13pm — 9 Comments
एक बच्चा था, अबोध, हमारे यहाँ की भाषा के उसे निरा कहते है| निरा अबोध बच्चा, अक्ल से कच्चा, दिल से सच्चा| एक दिन खेलते खेलते जाने कहाँ आ पहुचा, उसे नहीं पता था, उसने देखा कुछ लोग थे , अजीब दाड़ी टोपी लगाए, हँसते हुए, बांस की पंचटो के ढाँचे पर आटे की लेई से पतंगी कागज चिपकाते हुए| उसने देखा, कुछ बच्चे उस जैसे ही, निरे अबोध बच्चे, मदद कर रहे है अजीब दाड़ी टोपी वाले लोगे की, वो देखता रहा, बहुत देर तक देखता रहा, उसका दिल रंगीन कागजों में अटक गया था, वो चिपकाना चाहता था उस पतंगी कागज को, बांस की…
ContinueAdded by अमि तेष on January 11, 2013 at 11:11pm — 4 Comments
तुम ने कहा,
तुम जी लोगी मेरे साथ हर हाल में,
मुझे शायद इसके लिये भी,
शुक्रिया अदा करना चाहिये तुम्हारा ......
पर क्या तुम जानती हो,
इस कमबख्त दुनियां में
जहां कोई किसी का सगा नहीं,
हालात कैसे हो सकते है....
बोलो जी पाओगी,
जब दुनियां भर के थपेड़े,
बिना दरबाजा खटखटाये,
हमारे कमरे में दाखिल होंगे......
बोलो जी पाओगी,
जब मेरी शायरी में,
तिलमिलाएगी भूख,
नीम से कडबे…
ContinueAdded by अमि तेष on January 3, 2013 at 2:58pm — 13 Comments
हाँ हमें कुछ शर्म करना चाहिये
या हमें अब डूब मरना चाहिये
देश क्यों बदला नहीं कुछ आज तक
देश को क्यों और धरना चाहिये
दर्द ही है जख्म की संवेदना
क्यों भला इससे उभरना चाहिये
रों रही है माँ बहन औ बेटियां
जिन्दगी इनकी सवरना…
ContinueAdded by अमि तेष on January 1, 2013 at 11:47am — 12 Comments
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