अंदाज़ क्या खूब हैं उनकी नज़रों के या रब,
Added by AjAy Kumar Bohat on January 7, 2012 at 9:00pm — 6 Comments
कभी-कभी मैं सोचता हूँ की
ये रोटियाँ, रोटियाँ न हो कर
जैसे कोई रबड़ हैं
जो मिटा देती हैं
भूख को,
लेकिन असल समस्या
तो उस कलम की है
जो लिखती जा रही है,
भूख, भूख, भूख.....
मुक़द्दर में तू कैसे-कैसे ईनाम लिखता है
कहीं की सुबह, कहीं की शाम लिखता है |
करूँ तो करूँ कैसे तेरी इनायतों का शुक्रिया
कहाँ-कहाँ की रोटियों पे तू मेरा नाम लिखता है…
Added by AjAy Kumar Bohat on January 3, 2012 at 7:00pm — 10 Comments
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