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Dr T R Sukul's Blog – January 2016 Archive (3)

कवच और कुण्डल

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कवच और कुण्डल
---------------------- 
संसार  के जीर्णतम प्राणी से भी भयाक्रान्त वह,
जीवन सम्हाले है क्यों कि ,
उसके वक्षस्थल पर दुर्भाग्य का कवच 
और कानों में विपन्नता के बाले हैं।
तिरस्कार ,घृणा और उपहास का,
जन्मजात.....
साम्राज्य पाकर भी,
अपनत्व की , कुछ  साॅंसों की आस पाले है।
ग्रीष्म, वर्षा और शीत का मनमीत
अंतहीन अंबर है घर का छत…
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Added by Dr T R Sukul on January 27, 2016 at 10:19am — 12 Comments

विद्वान बढ़ते जा रहे हैं

168
विद्वान बढ़ते जा रहे हैं
=============
जनगोष्ठियों या जन सभाओं में,
वक्ता अगण्य होते हैं।
कुर्सियाॅं सब भरी होती हैं पर, श्रोता नगण्य होते हैं।
प्रायोजित की गई भीड़ में
स्वयं थपथपाते वक्ता अपनी पींठ,
होड़ रहती है अधिकाधिक बोलने की।
इसलिये,
सुनना अनसुना कर अन्य सभी सोते हैं।
पुराणकार ‘व्यासजी‘, जब ज्ञान बघारने पहुॅंचे भीड़ में,
तो उन्हें किसी ने…
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Added by Dr T R Sukul on January 21, 2016 at 5:36pm — 2 Comments

किसे कहें विदा और करें किसका स्वागत जतन।

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वही रवि, वही किरण, 

वही धरा, वही गगन,

शीत के पुनीत कर्म में जुड़ा वही पवन।

 

वही रजनी, वही दिवा, 

वही संध्या , वही उषा,

मयंक भी भटक रहा लिये सतत जिजीविषा।

 

पुरा वही, वही नया , 

कहें सभी नया, नया,

बदल रहे हैं मात्र अंक, बदल रही सतत प्रभा।

 

इसी गणन में अटका मन 

निहारता रूपान्तरण,

किसे कहें विदा और करें किसका स्वागत जतन।

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

०१ जनवरी…

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Added by Dr T R Sukul on January 1, 2016 at 9:00am — 6 Comments

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