Added by Dr T R Sukul on January 27, 2016 at 10:19am — 12 Comments
Added by Dr T R Sukul on January 21, 2016 at 5:36pm — 2 Comments
200
वही रवि, वही किरण,
वही धरा, वही गगन,
शीत के पुनीत कर्म में जुड़ा वही पवन।
वही रजनी, वही दिवा,
वही संध्या , वही उषा,
मयंक भी भटक रहा लिये सतत जिजीविषा।
पुरा वही, वही नया ,
कहें सभी नया, नया,
बदल रहे हैं मात्र अंक, बदल रही सतत प्रभा।
इसी गणन में अटका मन
निहारता रूपान्तरण,
किसे कहें विदा और करें किसका स्वागत जतन।
मौलिक एवं अप्रकाशित
०१ जनवरी…
ContinueAdded by Dr T R Sukul on January 1, 2016 at 9:00am — 6 Comments
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