रातों के बेच कर ,दिन की रोशनी मैं इज्जत से जिन मज़बूरी हैं मेरी
आत्मा को बेच कर ,चहरे पर ये रौशनी झूठी है मेरी
जिनके आगे रातें लूटी हैं लुटाया है मैंने ,
उन्हें दिन में इज्जत देने वालों की पहली कतार में पाया हैं मैने
रातों ......
वैसे कहने को तो सभ कुछ पाया है मैने ,
पर हकीकत ये है ,सब कुछ लुटाया हैं मैंने
मेरे आंशुओं की नीलामी लगाई हैं उन्होंने
मेरे मजबूरियों की पूरी कीमत पाई है उन्होंने
रातों....
मुझे चीर…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on January 28, 2015 at 12:00pm — 14 Comments
यह बचपन ,बचपन मैं जवान हो गया
जानता नहीं बचपन ,बचपन क्या चीज है
नहीं जानता है यह हंसना -खेलना
नहीं जानता यह रूठना मनाना,
जानता नहीं यह माँ बाप का प्यार
सीखा नहीं क्या होता है बचपन का दुलार
नहीं सीखा इसने पढ़ना लिखना ,
हाँ सीख लिया है जिंदगी को पढ़ना
जानता हैं चौबीसों घंटे मेहनत करना
रोटी कपडा मिलता है इसे इनाम
यह बचपन,बचपन मैं जवान हो गया
अब यह जवान हो गया है
जवान होते होते जिसने अपनी जवानी ,
बचपन मैं…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on January 25, 2015 at 9:05pm — 7 Comments
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