सूद पहले फिर असल दो
इक मुहब्बत की ग़ज़ल दो
जो परिन्दे छत पे आयें
उनको दाने और जल दो
शक्ल वैसी ही रहेगी
आईना चाहे बदल दो
धर्मशाला है ये दुनिया
रात काटो और चल दो
ये बदन कल तक नया था
अब पुराना है बदल दो
तुम सवेरे-शाम आओ
मेरे जीवन में खलल दो
......दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 7:13pm — 14 Comments
सामान उठाते हैं
अब लौट के जाते हैं
दिल मेरा दुखाने को
अहबाब भी आते हैं
ये चाँद-सितारे भी
रातों को रुलाते हैं
जो टूट के मिलते थे
वो रूठ के जाते हैं
मैं उनका निशाना हूँ
वो तीर चलाते हैं
हम अपनी उदासी को
हँस-हँस के छुपाते हैं
की ख़ूब अदाकारी
पर्दा भी गिराते हैं
.......दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments
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