जाड़ा है, हहराती ठंढी रात
साल आय गा फिर से बन नवजात
सोहर गावौ बहिनी जन्मा लाल
जग के आँगन जगमग उतरा साल
अब तो बजै बधइया नाचैं नारि
नए साल पर डारैं दुनियाँ वारि
अँगनइया माँ थरिया मधुर बजाव
पानी भरी गगरिया भौजी लाव
नाउन है बिरझानी माँगे नेग
पायल मातु धरित्री देहु सवेग
वारिन बोलै मैया जाइ न देब
नया साल है जन्मा बिछिया लेब
तुम काहे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2018 at 8:21pm — 4 Comments
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