नहीं कुछ गाँव सा सुनता हुआ निष्ठुर नगर
दिखाने घाव मत जाना सखा निष्ठुर नगर।१।
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उसे डर है कि उसके हित कमीं आजायेगी
नहीं देता किसी का भी पता निष्ठुर नगर।२।
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नदी सूखी हुई कहती है प्यासे खेत से
तेरे हिस्से का पानी पी गया निष्ठुर नगर।३।
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कहाँ तुम बात दुख की यार करते हो भला
खुशी तक में अकेला ही दिखा निष्ठुर नगर।४।
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निकल पाया न खुद के व्यूह से सायास…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 31, 2021 at 8:59am — 9 Comments
दो आशीष नया हो भारत
जग में और बड़ा हो भारत।१।
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आयु बढ़े नित जितनी इसकी
उतना और युवा हो भारत।२।
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ज्ञाता हो विज्ञान का लेकिन
साथ ही वेद पढ़ा हो भारत।३।
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दुख के नाले सब सूखे हों
सुख का एक किला हो भारत।४।
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जिनके घर ढब बन्द पड़े हैं
कहते और खुला हो भारत।५।
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उनको सबक सिखाना वीरों
जिनकी चाह डरा हो भारत।६।
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सीमाओं का द्वन्द मिटाकर
दोनों ओर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2021 at 8:30am — 9 Comments
२२/२२/२२/२२
तोड़ के घर का ताला उसने
ढूँढा सिर्फ निवाला उसने।१।
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लत पीने की ऐसी लगायी
बेच दी माँ की माला उसने।२।
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खुद औरों के कन्धे पर चढ़
कहता बोझ सँभाला उसने।३।
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दूध पिलाना था बच्चों को
पर नागों को पाला उसने।४।
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जिसको हमने माना सूरज
रोका नित्य उजाला उसने।५।
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जिसको सब खोटा कहते हैं
सिक्का वही उछाला उसने।६।
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अपनों को ही चोट है मारी
फेंका जब जब भाला…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2021 at 6:35am — 10 Comments
२२/२२/२२/२२
दुनिया जिससे डरती होगी
प्यार न उससे करती होगी।१।
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जैसा इसको नोच रहे हम
कैसी कल ये धरती होगी।२।
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चाँद नगर क्या जाना यारो
भूमि वहाँ भी परती होगी।३।
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जितना विष हम पिला रहे हैं
नित्य नदी एक मरती होगी।४।
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चाँद को जब बदसूरत करने
दुनिया रोज उतरती होगी।५।
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धरती के मन की हर पीड़ा
पलपल और उभरती होगी।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2021 at 8:04am — 4 Comments
२२/२२/२२/२२
जनता पर हर वार सियासी
नेता की है हार सियासी।१।
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खून खराबा झेल रहा नित
होकर यह सन्सार सियासी।२।
*
बाहर बाहर फूट का दिखना
भीतर जुड़ना तार सियासी।३।
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बस्ती में आने मत देना
कोई भी अंगार सियासी।४।
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घर फूटेगा हो जाने दो
बातें बस दो चार सियासी।५।
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देश का पहिया जाम पड़ा है
दौड़ रही बस कार सियासी।६।
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संकट का क्या अन्त करेगा
झूठा हर अवतार सियासी।७।
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दम घोटे है नित जनता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2021 at 10:17am — 12 Comments
मन में जब है प्यास रे जोगी
क्या लेना सन्यास रे जोगी।१।
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महलों जैसे सब सुख भोगे
क्यों कहता बनवास रे जोगी।२।
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व्यर्थ किया क्यों झूठे मद में
यौवन का मधुमास रे जोगी।३।
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हम से कहता वासना त्यागो
छिप के करता रास रे जोगी।४।
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खुद ही जब ये निभा न पाया
औरों से क्या आस रे जोगी।५।
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मत कह बन्धन मुक्त हुआ है
तू भी हम सा दास रे जोगी।६।
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तन का है या मन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 7:30am — 6 Comments
भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है
शुभ रहे नव वर्ष ये जो आ रहा है।१।
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आँख जब आँसू झराने को विवश थी
अन्त उस मौसम का होने जा रहा है।२।
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जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर
भोर का सूरज हमें समझा रहा है।३।
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बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का
ये वचन मन को सभी के भा रहा है।४।
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पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी
साथ यह उम्मीद साथी ला रहा है।५।
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बाँटना …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2021 at 8:25am — 11 Comments
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