२१२२/२१२२/२१२२/२१२
दो तनिक मुझ मूढ़ को भी ज्ञान अब माँ शारदे
चाहता हूँ मारना अभिमान अब माँ शारदे।१।
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आ गया देखो शरण में शीश चरणों में पड़ा
भाव पूरित शब्द दो अभिदान अब माँ शारदे।२।
*
यूँ असम्भव है समझना ईश के वैराट्य को
कर सकूँ केवल तनिक गुणगान अब माँ शारदे।३।
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व्याप्त तनमन में अभी तक नष्ट हो ये मूढ़ता
फूँक दो इक मन्त्र देता कान अब माँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 11:37pm — 4 Comments
विकृत कर गणतंत्र का, राजनीति ने अर्थ
कर दी है स्वाधीनता, जनता के हित व्यर्थ।१।
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तंत्र प्रभावी हो गया, गण को रखकर दूर
कह सेवक स्वामी बने, ठाठ करें भरपूर।२।
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आयेगा गणतंत्र में, अब तक यहाँ वसंत
तन्त्र बनेगा कब यहाँ, बोलो गण का कन्त।३।
*
भूखे को रोटी नहीं, न ही हाथ को काम
बस इतना गणतन्त्र में, गाली खाते राम।४।
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द्वार खोलती पञ्चमी, कह आओ ऋतुराज
साथ पर्व गणतंत्र का, सुफल सभी हों काज।५।
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लोकतंत्र के पर्व सह, आया …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 6:42am — 2 Comments
इस तमस की खोह में आ चाँद भूले से कभी तो
गीत गा दो तुम सुरीला, वेदना को भूल जाऊँ।
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जब नगर हतभाग्य से आ खो गये हैं गाँव मेरे
हर कदम पर चोट खाकर पथ विचलते पाँव मेरे।।
तोड़कर सँस्कार सारे छू रहे प्रासाद तारे
धूप से भयभीत मन है पग जलाती छाँव मेरे।।
सभ्यता की रीत कोई भौतिकी गढ़ती नहीं है
आत्ममंथन कर लचीला, वेदना को भूल जाऊँ।
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जन्म पर जो भी तनिक थी, तात की पहचान खोई
बन सका है भर जगत में,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2023 at 2:04pm — 4 Comments
इस मधुवन से उस मधुवन तक
पतझड़ पसरा है आँगन तक।१।
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पायल बिछिया तक जायेगा
आ पसरा है जो कंगन तक।२।
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मत मरने दो मन इच्छाएँ
आ जायेगा यह यौवन तक।३।
*
दिखता जब ऋतुराज न कोई
फैल न जाये अब यह मन तक।४।
*
धरती की तो रही विवशता
पसरे मत यह और गगन तक।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2023 at 3:52pm — 2 Comments
सदियों पावन धाम रहा जो खोते देख रहा हूँ
बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ !
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केवल अपनी पीड़ा से जो, दरक नहीं रहा है
पूर्ण हिमालय की पीड़ा को, उसने आज कहा है।।
पानी रिसना बोल रहे सब, देख फूटतीं धमनी
खोद खोद कर देह सकारी, जब कर बैठे छलनी।।
नयी सभ्यता के प्रलय को होते देख रहा हूँ
बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ।।
*
सिर्फ़ सैर के लिए हिमालय, सबने मान लिया है
इसीलिए तो अघकचरा सा हर निर्माण किया है।।
जो संचालक देश - राज्य के,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2023 at 6:30pm — 6 Comments
महक उठा है देखो आँगन, सुनकर ये संदेश।
साजन अपने घर लौटेंगे, छोड़ छाड़ परदेश।।
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जाने कितने पुष्प पठाये सुनके वनखण्डी ने।
जिन से गूँथे गाँव सकारे सर्पिल पगडण्डी ने।।
पतझड़ में आया है गाने फागुन हँसकर गीत।
सूने मन के आँगन होगा अब ऋतुराज प्रवेश।।
*
पोंछ पसीना अँगड़ाई ले जगकर थकी क्रियाएँ।
सौंप रही मीठे सम्बोधन फिर से खुली भुजाएँ।।
करने को उद्यत मनुहारें, झील किनारे चाँद।
बनजारा सूरज ठहरा है, फिर सुलझाने केश।।
*
सब खुशियाँ हैं सेज सजाती, करती नव…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2023 at 5:05am — 4 Comments
( सरसी छंद)
***
धीरे-धीरे जब आती है, घर आँगन में शीत।
नाना रूपों में रक्षा को, ढल जाती है प्रीत।।
माँ के हाथों स्वेटर में ढल, दे बचपन में साथ।
युवा हुए तो ऊष्मा देता, बन अनजाना हाथ।।
*
पत्नी होकर सदा चूमता, स्नेह शीत में माथ।
होते वंचित सिर्फ शीत में, लोगो यहाँ अनाथ।।
बचपन, यौवन रहे बुढ़ापा, सर्द शीत की रात।
उष्मित करती तन्हाई में, सिर्फ प्रीत की बात।।
*
प्रेम रहित तनमन करता है, जीवन से परिवाद।
सर्द शीत की रातों की तो, ला मत कोई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2023 at 6:22am — 1 Comment
गीत-११
*
स्वार्थ के विधान अब और यूँ गढ़ो नहीं।
अर्थ के अनर्थ कर प्रपंच नित पढ़ो नहीं।।
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आप यूँ अनीति को लोभवश न मान दो।
छीन निर्बलों से मत सशक्त को जहान दो।।
मार्ग हो कठिन भले हर परोपकार का।
सिर्फ हित स्वयं के ही मत कभी वितान दो।।
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अशक्त पर प्रहार कर क्रूर दर्प से बिहँस।
मानकर अनाथ हैं दोष निज मढ़ो नहीं।।
*
आह हर अशक्त की वज्र जब रचायेगी।
कौन शक्ति पाप का घट भला बचायेगी।।
हर तमस के अन्त को दीप जन्मता सदा।
सूर्य की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2023 at 2:23pm — 2 Comments
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