आँख-मिचौनी
साँझ के रंगीन धुँधलके ...
आँख-मिचोनी खेलते
एक दूसरे को टटोलते
मद्धम रोशनी में उभरती रही
कोई पवित्र विलुप्त लालसा
आवेगों में खो जाने की…
ContinueAdded by vijay nikore on February 2, 2020 at 2:30pm — 4 Comments
फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212
हम हैं नाकाम-ए-राह-ए-वफ़ा
काम आई तेरी बद-दुआ ।
इश्क़ की है अभी इब्तिदा ,
यार मुझ को न तू आज़मा।
रात भर जागता रहता है,
चाँद क्यों इतना है ग़म-ज़दा ।
वो पता पूछे तो बोलना
"कुछ दिनों से हूँ मैं लापता"
आखरी बार मुझ से मिलो ,
आखरी बार है इल्तिजा ।
अब नही देखता तुझ को मैं,
रायगाँ है सवरना तेरा ।
जा रहा हूँ तेरे दर से मैं
दिलरुबा ग़म छुपा,,मुस्कुरा |
- शेख ज़ुबैर अहमद
(मौलिक…
Added by Shaikh Zubair on February 1, 2020 at 4:33pm — 4 Comments
प्रधान संपादक, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी के आलोक में यह रचना पटल से हटायी जा रही है ।
सादर
गणेश जी बाग़ी
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 1, 2020 at 9:30am — 30 Comments
2122 2122 2122 212
जब सफलता मिल गई खुद का किया लिक्खा गया,
अपनी हारों को खुदा का फैसला लिक्खा गया।
आपके शफ्फाक दामन को बचाने के लिए,
कत्ल मुझ बदबख्त का इक हादसा लिक्खा गया।
दर ब दर होते रहे वो सारे खत खुशियों भरे ,
जिन पर तेरा नाम और मेरा पता लिक्खा गया।
चार भाई साथ रहकर कितने खुश थे हम कभी,
टूटकर बिखरे तो फिर दिल भी जुदा लिक्खा गया।
अब हमारी जिंदगी में एक उलझन ये भी है,
उसके दिल में…
Added by मनोज अहसास on February 1, 2020 at 12:07am — 2 Comments
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