चिलचिलाती धूप में तुम याद आये
मधु गीति सं. १५९६ , रचना दि. ३१ दिसम्वर, २०१०)
चिलचिलाती धूप में तुम याद आये, झिलमिलाती रोशनी में नजर आये;
किलकिलाती दुपहरी में दिल लुभाए, तिलमिलाती…
ContinueAdded by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:50pm — 1 Comment
मग बुहारूँ जग निहारूँ प्रीति ढालूँ
(मधु गीति सं. १५९७, दि. ३१ दिसम्वर, २०१०)
मग बुहारूँ जग निहारूँ प्रीति ढालूँ, त्राण तरजूँ मनहि बरजूँ प्राण परसूँ;
श्याम हैं मधु राग भरकर गीत गाये, प्रीति की भाषा लिये…
ContinueAdded by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:46pm — 1 Comment
क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर
(मधु गीति सं. १६०४, रचना दि. २ जनवरी, २०११)
क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर, क्यों विलखते हो विलय का राग सुनकर;
दया क्यों ना कर रहे जग जीव पर तुम, हृदय क्यों ना ला रहे तुम…
ContinueAdded by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:44pm — 3 Comments
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छान्दसिक आनन्द की गति में हुलस कर
(मधु गीति सं. १६२२, दि. ७ जनवरी, २०११)
छान्दसिक आनन्द की गति में हुलस कर, मिलन की अभिव्यंजना से विदेही उर;…
Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:42pm — No Comments
ग़ज़ल : - बनारस के घाट पर
कुछ था ज़रूर खास बनारस के घाट पर ,
धुंधला दिखा लिबास बनारस के घाट पर |
घर था हज़ार कोस मगर फ़िक्र साथ थी ,
मन हो गया उदास बनारस के घाट पर |
संज्ञा क्रिया की संधि में विचलित हुआ ये मन
गढ़ने लगा समास बनारस के…
ContinueAdded by Abhinav Arun on February 1, 2011 at 9:00am — 13 Comments
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