Added by रामबली गुप्ता on February 26, 2017 at 7:00am — 18 Comments
२१२२, ११२२, ११२२, २२
ये नहीं है कि हमें उन से मुहब्बत न रही,
बस!! मुहब्बत में मुहब्बत भरी लज्ज़त न रही.
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रब्त टूटा था ज़माने से मेरा पहले-पहल,
रफ़्ता-रफ़्ता ये हुआ ख़ुद से भी निस्बत न रही.
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ज़ह’न में कोई ख़याल और न दिल में हलचल,
ज़िन्दगी!! मुझ में तेरी कोई अलामत न रही.
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उन से नज़रें जो मिलीं मुझ पे क़यामत टूटी,
वो क़यामत!! कि क़यामत भी क़यामत न रही.
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याद गर कीजै मुझे, यूँ न…
Added by Nilesh Shevgaonkar on February 21, 2017 at 12:00pm — 17 Comments
Added by नाथ सोनांचली on February 19, 2017 at 2:53pm — 26 Comments
Added by Mahendra Kumar on February 19, 2017 at 11:30am — 23 Comments
2122 2122 2122
हर हथेली, क़ातिलों की जान ए जाँ है
ज़ह्र उस पे, मुंसिफों सा हर बयाँ है
बाइस ए हाल ए तबाही हैं, उन्हें भी --
बाइस ए तामीर होने का गुमाँ है
एक अंधा एक लंगड़ा हैं सफर में
प्रश्न ये है, कौन किसपे मेह्रबाँ है
किस तरह कोई मुख़ालिफ़ तब रहेगा
जब कि हर इक, दूसरे का राज दाँ है
जिन चराग़ों ने पिया ख़ुर्शीद सारा
उन चराग़ों में भला अब क्यूँ धुआँ है
जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on February 19, 2017 at 9:30am — 20 Comments
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