१२२२ १२२२ १२२२ १२२
तेरी हर शै मुझे भाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
मुझे तू देख शरमाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
कभी हो इश्क़ तो रुन-झुन कहीं महसूस होगी
इशारे कर के समझाए तो क्या वो इश्क़ होगा
पिए ना जो कभी झूठा, मगर मिलने पे अकसर
गटक जाए मेरी चाए, तो क्या वो इश्क़ होगा
सभी से हँस के बोले, पीठ पीछे मुंह चिढ़ाए
मेरे नज़दीक इतराए, तो क्या वो इश्क़ होगा
हज़ारों बार हाए, बाय, उनको बोलने पर
पलट के बोल दे…
ContinueAdded by दिगंबर नासवा on February 17, 2019 at 2:28pm — 7 Comments
इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई
आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई
कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई
रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई
माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो…
ContinueAdded by दिगंबर नासवा on February 8, 2019 at 1:30pm — 8 Comments
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