....................ऑंखें...........................
आँखों में आप काज़ल जरा कम लगाइए.
तारीकियों को इनकी न इतना बढाइए.
हिन्दोस्तां की दुनिया रोशन इन्हीं से है.
अँधेरों से आज इसको वल्लाह बचाइए.
गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान'
अजमेर (राज.)
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 5:46pm — 2 Comments
तेरी अधखुली सी आँखें, भंवरे कँवल में जैसे.
मदहोश सो रहे हों , अपने महल में जैसे.
चुनरी पे तेरी सलमा-सितारे हैं यूँ जड़े.
सरसों के फूल खिलते, धानी फसल में जैसे.
शर्मो-हया है इनकी वैसी ही बरक़रार.
देखी थी इनमें मैंने पहली-पहल में जैसे.
जुर्मे-गौकशी को कानूनी सरपनाही.
जी रहे हैं अब भी, दौरे-मुग़ल में जैसे.
वैसे ही होना होश जरूरी है जोश में.
है अक़ल का होना कारे-नक़ल में जैसे.
बहके बहर…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 5:35pm — 3 Comments
ग़ज़ल : कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.
बहने लगी हैं उल्टी हवाएँ तो क्या करें.
कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.
वो ही लिखा है मैंने जो अच्छा लगा मुझे.
नासेह सर को अपने खपाएँ तो क्या करें.
जल्लाद हाथ में जब खंजर उठा चुका.
खौफे अजल न तब भी सताएँ तो क्या करें.
इल्मे-अरूज पर पढ़ कर के लफ़्ज चार. .
खारिज बहर ग़ज़ल को बताएँ तो क्या करें.
कह तो रहें आप कि रंजिश नहीं मगर.…
ContinueAdded by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on February 26, 2018 at 1:29pm — 3 Comments
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