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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – February 2017 Archive (2)

सखी

बदमाश सखी की चंचल बातें
करती मस्ती
कभी तो कर देती है दूर
खींच एक लकीर

क्या खोया पाया
मन की वेदना को
अब रास आती है
खामोशियाँ ....

हँसते रहना है
दूर हो जाये हर मुश्किल
सखी की ...

न दो अब कोई आवाज़
थके कदमो से चलना है
अभी बाक़ी है कोई राह
पुकारती हुई सी ...

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 22, 2017 at 7:13am — 2 Comments

बसन्त गीत

देखो देखो री सखी
किया कैसा है श्रृंगार
बसन्ती हवा है चली
ऋतु राजा है तैयार ।

मीठी कोयल की बोली
झूली अम्बुवा की डार ।

ऋतु राजा है बोला
पिया करलो थोडा प्यार ।

गाओ मन भावन ये राग
हो ये बसन्त बहार ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 9, 2017 at 8:49pm — 2 Comments

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