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Sushil Sarna's Blog – February 2015 Archive (6)

सीप में बंद मोती .....

सीप में बंद मोती .....

दूर उस क्षितिज पर

रोज इक सुबह होती है

रोज सागर की सूरज से

जीवन के आदि और अंत की बात होती है

जब थक जाता है सूरज

तो सागर के सीने पर

अपना सर रख देता है

और रख देता है

अपने दिन भर के

सफ़र की थकान को

अपने हर सांसारिक

अरमान को

बिखेर देता है

अपनी सुनहरी किरणों की

अद्वितीय छटा को

सागर की शांत लहरों पर

फिर अपने अस्तित्व को

धीरे-धीरे निशा में बदलती

सुरमई सांझ के आलिंगन में…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 26, 2015 at 1:07pm — 18 Comments

प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं.....

प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं.....

प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं

प्रेम धरा है प्रेम गगन है

प्रेम मिलन है प्रेम विरह है

श्वास श्वास का प्रेम बंधन है

प्रेम ईश है प्रेम है पूजा

स्मृति घाट का प्रेम मधुबन है

पावन गंगा सा प्रेम समेटे

लिप्त बूंदों में प्रेम नयन है

मौन अधरों में गुन गुन करता

प्रेम में डूबा प्रेम कम्पन है

आत्मसात का भाव समेटे

प्रेम हकीकत प्रेम स्वप्न है

प्रेम अलौकिक अपरिभाषित

हृदय नयन का प्रेम अंजन…

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Added by Sushil Sarna on February 23, 2015 at 7:30pm — 16 Comments

कौन पी गया जल मेघों का …..

कौन पी गया जल मेघों का …..

कौन पी गया जल मेघों का …..

और किसने नीर बहाये //

क्योँ बसंत में आखिर …

पुष्प बगिया के मुरझाये //

प्रेम ऋतु में नयन देहरी पर …

क्योँ अश्रु कण मुस्काये //

विरह का वो निर्मम क्षण ….

धड़कन से बतियाये //

वायु वेग से वातायन के ….

पट क्योँ शोर मचाये //

छलिया छवि उस निर्मोही की …

तम के घूंघट से मुस्काये //

वो छुअन एकान्त की ….

देह विस्मृत न कर पाये //

तृषातुर अधरों से विरह की ….

तपिश सही न जाए…

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Added by Sushil Sarna on February 17, 2015 at 7:42pm — 26 Comments

मेरी पलकों को......

मेरी पलकों को......एक रचना 

मेरी पलकों को अपने ख़्वाबों की  वजह दे दो

अपनी साँसों में  मेरे जज़्बातों को जगह दे दो

जिसकी  नमी  तुम ये  दामन सजाये बैठी हो

उसके  रूठे  सवालों को जवाबों में जगह दे दो

बंद हुआ  चाहती हैं  अब थकी हुई पलकें मेरी

अपनी तन्हाई में रूहानी रातों  को जगह दे दो 



ये ज़िंदगी तो गुज़र जाएगी तेरे हिज्र के सहारे 

इन हाथों में कुछ रूठे हुए वादों को जगह दे दो

कल का वादा न करो  कि अब न…

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Added by Sushil Sarna on February 12, 2015 at 8:00pm — 24 Comments

मैं अपनी मुहब्बत को …

मैं अपनी मुहब्बत को …एक रचना 



मैं अपनी मुहब्बत को इक मोड़ पे छोड़ आया हूँ

इक ज़रा सी ख़ता पे मैं हर क़सम तोड़ आया हूँ



जाने कितने लम्हे मेरी साँसों की ज़िंदगी थे बने

मैं तमाम ख़्वाब उनकी पलकों में छोड़ आया हूँ



जिसकी मौजूदगी  में खामोशी भी बतियाती थी

अब्र की  चिलमन में वो माहताब छोड़ आया हूँ



बन के  हयात  वो हमसे क्यों बेवफाई .कर गए

उनकी  दहलीज़ पे  मैं  हर  आहट छोड़ आया हूँ



हिज्र का  दर्द  चश्मे  सागर में न सिमट पायेगा…

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Added by Sushil Sarna on February 6, 2015 at 12:02pm — 18 Comments

ऐ दिल ……

ऐ दिल ……



ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान  होता है

हर किसी के आगे क्यूँ  व्यर्थ में रोता है

कौन भला यहां  तेरा दर्द समझ पायेगा

हर अरमान यहां अश्क के साथ सोता है

ऐ दिल तू क्यूँ व्यर्थ में परेशान  होता है ……

ये सांझ नहीं अपितु सांझ का  आभास है

पल पल क्षरण होते रिश्तों  का आगाज़ है

भावों की कन्दराओं में बोलता सन्नाटा है

पाषाणों में कहाँ  प्यार  का सृजन होता है

ऐ दिल  तू क्यूँ  व्यर्थ  में परेशान होता है…

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Added by Sushil Sarna on February 1, 2015 at 2:00pm — 12 Comments

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