“ पिताजी, वो अपनी नदी के पास वाली जमीन लगभग कितनी कीमत रखती होगी, अगर उसे बेच दिया जाय तो कैसा रहेगा ?
“क्यों..? बेटा क्या जरुरत आ पड़ी है ? खुली तिजौरी को बंद करने की..”
“ पिताजी..! ऐसे ही एक प्लान बनाया है, जिससे भविष्य संवर सकता है”
“ अरे बेटा..भविष्य संजोये रखने से संवरता है खोने से नही, वैसे मैंने अपनी नौकरी के रहते तुम्हारी पढाई पर बहुत खर्च किया, यहाँ तक की तुम्हारा घर बसाने में अपना पी.एफ. का पैसा भी झोंक दिया, , मैं तो यहाँ छोटे शहर में अपनी पेंशन से अपना और…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on February 6, 2014 at 12:05pm — 16 Comments
ऐ आसमान
इन सर्द रातों के
घने कोहरे में
तेरा दीदार नही होता
तेरी गर्म छुअन महसूस होती है
मुझे पता है, तू भी तपड़ता है
तरसता है, व्याकुल है मेरे शुष्क अधरों
को नमी देकर
खुद नमी पाने को
अपने शुष्क अधरों के लिए
गुनगुनी सी धूप में
मैं जल रही हूँ
ठंडी सर-सराती हवाएं
मेरे प्यार के दामन को चीर देती हैं
इतने बड़े दिन की, न जाने कब होगी ?
शीतल शाम
तू आएगा न मेरे…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2014 at 10:45am — 16 Comments
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