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Satish mapatpuri's Blog – February 2012 Archive (2)

मानसरोवर - 8

         

रे मानव क्या सोच रहा, इस मरघट में क्या खोज रहा ?
यथार्थ नहीं - यह धोखा है, सार नहीं यह थोथा है.
               यह जग माया का है बाज़ार.
               जहाँ रिश्ता का होता व्यापार.
कोई मातु - पिता, कोई भाई है, कोई बेटी और जमाई है.
कोई प्यारा सुत बन आया है, कोई बहन और कोई जाया है.
                    ये रिश्ते हैं छल के प्राकार.
                    ये हैं माया के ही प्रकार.
इस माया को ही…
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Added by satish mapatpuri on February 24, 2012 at 2:05am — 7 Comments

एक लड़की ( हास्य)

 
मुझे देख के एक लड़की, बस हौले -हौले हंसती है.
प्रेम - जाल मैं डाल के थक गया, पर कुड़ी नहीं फंसती है .
मुझे देख के एक लड़की, बस हौले -हौले हंसती है.
रहती है मेरे पड़ोस में वो, कुछ चंचल - कुछ शोख है वो.
ना गोरी - ना काली है,…
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Added by satish mapatpuri on February 15, 2012 at 1:08am — 5 Comments

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