For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – February 2019 Archive (4)

यादें - गजल ( लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' )

२२२२/ २२२२/२२२२/ २२२२



खेतों खलिहानों तक  पसरी  नीम करेला बरगद यादें

खूब सजाकर बैठा करती फुरसत के पल संसद यादें।१।



आवारापन इनकी  फितरत  बंजारों सी चलती फिरती

कब रखती हैं यार बताओ खींच के अपनी सरहद यादें।२।



कतराती हैं भीड़ भाड़ से हम तो कहते शायद यादें

तनहाई में करती  हैं  जो  सबको बेढब गदगद यादें।३।



बचपन रखता यार न इनको और सहेजे खूब बुढ़ापा

होती हैं लेकिन विरहन को सबसे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2019 at 8:00pm — 4 Comments

मुहब्बत अपनी लोगों ने सियासत से है कम कर ली - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२



जमा पूँजी थी  बरसों  की  जरुरत  ने हजम कर ली

मुहब्बत अपनी लोगों ने सियासत से है कम कर ली।१।



जमाना  अब  तो  हँसने  का  हँसेंगे  सब  तबाही पर

किसी दूजे के गम से कब किसी ने आँख नम कर ली।२।



सदा से नाज था जिसके वचन की सादगी पर ढब

उसी ने आज हमसे भी  बड़ी  झूठी कसम कर ली।३।



मुहब्बत रास आती  क्या  जफाएँ हर तरफ उस में

हमीं ने यूँ हर इक रंजिश खुशी से हमकदम कर ली।४।



बिगड़ जाती थी जो छोटी बड़ी हर बात पर हमसे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2019 at 6:36am — 3 Comments

पुरखे हमारे  एक  हैं  मजहब  से तोल मत - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ( गजल )

२२१/२१२१/२२२/१२१२



क्या कीजिएगा आप यूँ पत्थर उछाल कर

आये हैं भेड़िये तो  सब  गैंडे सी खाल कर।१।



कितने  जहीन  आज-कल  नेता  हमारे  हैं

मिलके चला रहे हैं सब सन्सद बवाल कर।२।



वो चुप थे बम के दौर में ये चुप हैं गाय के

जीता न कोई  देश  का  यारो खयाल कर।३।



पुरखे हमारे  एक  हैं  मजहब  से तोल मत

तहजीब जैसी कर रहे उस पर मलाल कर ।४।



माना की मिल गयी तुझे संगत वजीर की

प्यादा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2019 at 5:31am — 10 Comments

नफरत को लोग शान से सर पर बिठा रहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२/१२१२

जब से वफा जहाँन में मेरी छली गयी

आँखों में डूबने की वो आदत चली गयी।१।

नफरत को लोग शान से सर पर बिठा रहे

हर बार मुँह पे प्यार के कालिख मली गयी।२।

अब है चमन ये  राख  तो करते मलाल क्यों

जब हम कहा करे थे तो सुध क्यों न ली गयी।३।

रातों  के  दीप  भोर  को  देते  सभी  बुझा

देखी जो गत भलाई की आदत भली गयी।४।

माली को सिर्फ  शूल  से  सुनते दुलार ढब

जिससे चमन से रुठ के हर एक कली…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2019 at 12:05pm — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी सादर. प्रदत्त चित्र पर आपने सरसी छंद रचने का सुन्दर प्रयास किया है. कुछ…"
43 seconds ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार घुसपैठ की ज्वलंत समस्या पर आपने अपने…"
13 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
""जोड़-तोड़कर बनवा लेते, सारे परिचय-पत्र".......इस तरह कर लें तो बेहतर होगा आदरणीय अखिलेश…"
17 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"    सरसी छंद * हाथों वोटर कार्ड लिए हैं, लम्बी लगा कतार। खड़े हुए  मतदाता सारे, चुनने…"
24 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी हार्दिक आभार धन्यवाद , उचित सुझाव एवं सरसी छंद की प्रशंसा के लिए। १.... व्याकरण…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द लोकतंत्र के रक्षक हम ही, देते हरदम वोट नेता ससुर की इक उधेड़बुन, कब हो लूट खसोट हम ना…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service