२२२२/ २२२२/२२२२/ २२२२
खेतों खलिहानों तक पसरी नीम करेला बरगद यादें
खूब सजाकर बैठा करती फुरसत के पल संसद यादें।१।
आवारापन इनकी फितरत बंजारों सी चलती फिरती
कब रखती हैं यार बताओ खींच के अपनी सरहद यादें।२।
कतराती हैं भीड़ भाड़ से हम तो कहते शायद यादें
तनहाई में करती हैं जो सबको बेढब गदगद यादें।३।
बचपन रखता यार न इनको और सहेजे खूब बुढ़ापा
होती हैं लेकिन विरहन को सबसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2019 at 8:00pm — 4 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
जमा पूँजी थी बरसों की जरुरत ने हजम कर ली
मुहब्बत अपनी लोगों ने सियासत से है कम कर ली।१।
जमाना अब तो हँसने का हँसेंगे सब तबाही पर
किसी दूजे के गम से कब किसी ने आँख नम कर ली।२।
सदा से नाज था जिसके वचन की सादगी पर ढब
उसी ने आज हमसे भी बड़ी झूठी कसम कर ली।३।
मुहब्बत रास आती क्या जफाएँ हर तरफ उस में
हमीं ने यूँ हर इक रंजिश खुशी से हमकदम कर ली।४।
बिगड़ जाती थी जो छोटी बड़ी हर बात पर हमसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 23, 2019 at 6:36am — 3 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
क्या कीजिएगा आप यूँ पत्थर उछाल कर
आये हैं भेड़िये तो सब गैंडे सी खाल कर।१।
कितने जहीन आज-कल नेता हमारे हैं
मिलके चला रहे हैं सब सन्सद बवाल कर।२।
वो चुप थे बम के दौर में ये चुप हैं गाय के
जीता न कोई देश का यारो खयाल कर।३।
पुरखे हमारे एक हैं मजहब से तोल मत
तहजीब जैसी कर रहे उस पर मलाल कर ।४।
माना की मिल गयी तुझे संगत वजीर की
प्यादा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2019 at 5:31am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२/१२१२
जब से वफा जहाँन में मेरी छली गयी
आँखों में डूबने की वो आदत चली गयी।१।
नफरत को लोग शान से सर पर बिठा रहे
हर बार मुँह पे प्यार के कालिख मली गयी।२।
अब है चमन ये राख तो करते मलाल क्यों
जब हम कहा करे थे तो सुध क्यों न ली गयी।३।
रातों के दीप भोर को देते सभी बुझा
देखी जो गत भलाई की आदत भली गयी।४।
माली को सिर्फ शूल से सुनते दुलार ढब
जिससे चमन से रुठ के हर एक कली…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2019 at 12:05pm — 6 Comments
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