(2212 2212)
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थे साथ मेरे जो कभी
मेरे नहीं थे वो कभी
कुछ दर्द कम तो हो मिरा,
ये घाव सी डालो कभी
जी को ज़रा ख़ामोश कर,
इन आँसुओं को रोक भी
कबतक दुखों से काम लूँ?
कोई ख़ुशी भी दो कभी
मैं ही सदा पलटा करूँ?
तुम भी मुझे रोको कभी
जिनका नहीं कोई कहीं,
उनके लिए भी रो कभी
जो मैं सही हूँ, 'दाद' दे,
जो मैं ग़लत हूँ, टोक भी
माँ ही…
ContinueAdded by Zaif on March 28, 2014 at 5:30pm — 9 Comments
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