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यह लब्ज़ -ऐ -बयां से तुम भी बाज़ न आये ज़िद
मरता नहीं है यह भी आरज़ू बेतहाशा किये बगैर
उर्दू भाषा की चाशनी और शायर का खयाल .. ग़ज़ल उम्दा हुई है.
दाद कुबूल कीजिये, भाई ज़ैफ़
एक बात : मिसरे के आखिर में किसी शब्द की एक बढ़ी हुई मात्रा ही स्वीकार्य होती है. अलग से कोई शब्द मान्य या स्वीकार्य नहीं होता. न ही यहाँ किसी ग़ाफ़ को गिराया ही जा सकता है.
लेकिन ऐसा आपके कई मिसरों में हुआ है.
यूँ काम कीजिये कि सलामत रहे अना* भी,
हर काम कीजे अपने को 'छोटा' किये बग़ैर।..badhiya sandesh
उन चाहतों का घोंट दे ऐ दिल गला, कि जिनका
चलता नहीं है काम, तमाशा किये बग़ैर।.. इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
अच्छा प्रयास है! आपको बहुत बधाई!
प्रिय
उन चाहतो का घोंट दे ऐ दिल गला ----बहुत अच्छा शेर है i आप राजेश कुमारी जी की सलाह पर भी गौर करें और निराश बिलकुल न हों भाव्नाओ पर आपकी पकड़ अच्छी है i बस थोडा शब्द संयोजन भी हो जाए तो अति उत्तम्र रहेगा i
चुप रहता क्यूँ भला कि बड़ा दर्द झेलता था?
मेरा क़लम न चल सका, चीखा किये बग़ैर।......क्या बात है.
यमित पुनेठा जैफ जी आपकी ग़ज़ल पहली बार पढ़ रही हूँ ....मतले पर ही अटक गई हूँ
जब कर लिया है इश्क़ भी, सोचा किये बग़ैर।------सोचे बगैर या सोचा किये बगैर ???
मेरा क़लम न चल सका, चीखा किये बग़ैर।-----चीखे बगैर या चीखा किये बगैर ??
याँ तो ज़बान कट गई बोला किये बग़ैर।-----बोले बगैर या बोला किये बगैर ??
मेरी हिंदी में तो ये वाक्य फिट नहीं बैठ रहे ...आप ही बताइये क्या सही है ?
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