For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- तुझे अपना किये बग़ैर (ज़ैफ़)

(221 2121 1221 212/1)

जब कर लिया है इश्क़ भी, सोचा किये बग़ैर।
मैं दम न लूँगा अब तुझे अपना किये बग़ैर।

ये दिल की लेन-देन है, नुकसान हो गया तो?
ये सौदा मत ही करना, भरोसा किये बग़ैर।

यूँ काम कीजिये कि सलामत रहे अना* भी,
हर काम कीजे अपने को 'छोटा' किये बग़ैर।
(*ego)

उन चाहतों का घोंट दे ऐ दिल गला, कि जिनका
चलता नहीं है काम, तमाशा किये बग़ैर।

मजबूरियाँ अजब हैं तवायफ़ की, क्या करे वो?
खाना नहीं हो पाता है धंधा किये बग़ैर।

चुप रहता क्यूँ भला कि बड़ा दर्द झेलता था?
मेरा क़लम न चल सका, चीखा किये बग़ैर।

कोई तो अश्क पोछ ले मेरे भी, या ख़ुदा!
कोई तो दिन गुज़ार लूँ, गरया* किये बग़ैर।
(*crying)

कुछ कहता तो पता नहीं क्या हश्र होता 'ज़ैफ़'?
याँ तो ज़बान कट गई बोला किये बग़ैर।

© (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Zaif on June 13, 2014 at 6:44pm
आप सभी के सुझावों के लिए बहुत धन्यवाद! :)
Comment by Zid on June 11, 2014 at 8:32pm

यह लब्ज़ -ऐ -बयां से तुम भी बाज़ न आये ज़िद
मरता नहीं है यह भी आरज़ू बेतहाशा किये बगैर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 3:13pm

उर्दू भाषा की चाशनी और शायर का खयाल .. ग़ज़ल उम्दा हुई है.

दाद कुबूल कीजिये, भाई ज़ैफ़

एक बात : मिसरे के आखिर में किसी शब्द की एक बढ़ी हुई मात्रा ही स्वीकार्य होती है. अलग से कोई शब्द मान्य या स्वीकार्य नहीं होता. न ही यहाँ किसी ग़ाफ़ को गिराया ही जा सकता है.

लेकिन ऐसा आपके कई मिसरों में हुआ है.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 12:08pm

यूँ काम कीजिये कि सलामत रहे अना* भी,
हर काम कीजे अपने को 'छोटा' किये बग़ैर।..badhiya sandesh

उन चाहतों का घोंट दे ऐ दिल गला, कि जिनका
चलता नहीं है काम, तमाशा किये बग़ैर।.. इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2014 at 10:08pm

अच्छा प्रयास है! आपको बहुत बधाई!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 11:39am

प्रिय

उन चाहतो का घोंट दे ऐ दिल गला ----बहुत अच्छा शेर है i आप राजेश कुमारी जी की सलाह पर भी गौर करें और निराश बिलकुल न हों भाव्नाओ पर आपकी पकड़ अच्छी है i बस थोडा  शब्द संयोजन भी हो जाए तो अति उत्तम्र रहेगा i  

Comment by coontee mukerji on June 4, 2014 at 6:15pm

चुप रहता क्यूँ भला कि बड़ा दर्द झेलता था?
मेरा क़लम न चल सका, चीखा किये बग़ैर।......क्या बात है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 4, 2014 at 5:42pm

यमित पुनेठा जैफ जी आपकी ग़ज़ल पहली बार पढ़ रही हूँ ....मतले पर ही अटक गई हूँ 

जब कर लिया है इश्क़ भी, सोचा किये बग़ैर।------सोचे बगैर या सोचा किये बगैर ???

मेरा क़लम न चल सका, चीखा किये बग़ैर।-----चीखे बगैर या चीखा किये बगैर ??

याँ तो ज़बान कट गई बोला किये बग़ैर।-----बोले बगैर या बोला किये बगैर ??

मेरी हिंदी में तो ये वाक्य फिट नहीं बैठ रहे ...आप ही बताइये क्या सही है ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी प्रस्तुति पर पुन: आता हूँ।  करूँगा मैं चर्चा सबुर आप…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी इस प्रस्तुति पर पुन: आऊँगा।  शुभातिशुभ"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service