For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - आदत हो गयी है

(2122 2122)

इक बुरी लत हो गयी है।
तेरी आदत हो गयी है।

नींद किसको आएगी अब?
जब मुहब्बत हो गयी है।

इश्क़ करवट ले रहा है,
इक शरारत हो गयी है।

शायरी जो मैंने लिक्खी,
प्यार का ख़त हो गयी है।

तुम भी चुप हो मैं भी चुप हूँ,
एक मुद्दत हो गयी है।

यूँ ख़ुदी से लड़ रहा हूँ,
ज्यूँ बग़ावत हो गयी है।

बिन बताये जा रहे हो!
इतनी नफ़रत हो गयी है?

मैंने तो उल्फ़त करी थी,
पर इबादत हो गयी है।

पास मेरे, आ गईं तुम,
थोड़ी राहत हो गयी है।

'ज़ैफ़', मेरा हाल देखो!
क्या बुरी गत हो गयी है।

© ज़ैफ़

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 500

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Zaif on July 17, 2014 at 4:39pm
आप सभी आदरणीय जनों का तहे-दिल से शुक्रिया।
मैं रोज़ कुछ नया सिखने की कोशिश करता हूँ। पुनः धन्यवाद आप सभी को।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 11:16pm

एक अच्छी ग़ज़ल से गुजरने का अवसर मिला है जनाब ज़ैफ़ साहब.
आपकी ग़ज़लों से गुजरने का जब-जब अवसर मिलता है कुछ-न-कुछ नया मिलता है.

मैंने तो उल्फ़त करी थी,
पर इबादत हो गयी है।..  वाह !

इस बढिया प्रस्तुति पर दिल से दाद कुबूल फ़रमायें साहब.

एक बात,
इस शेर में तकाबुले रदीफ़ का ऐब है. इसके प्रति संवेदनशील हों तो अवश्य दुरुस्त हो लें,
इश्क़ करवट ले रहा है,
इक शरारत हो गयी है

बहरहाल, आपकी इस बढिया ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई.

Comment by vijay nikore on July 13, 2014 at 4:36pm

बहुत अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 13, 2014 at 9:32am

मैंने तो उल्फ़त करी थी,
पर इबादत हो गयी है।..............क्या बात है, बहुत खूब. दिली बधाई आपको आदरणीय यमित जी

Comment by Santlal Karun on July 12, 2014 at 8:30pm

आदरणीय यमित जी,

अच्छी ग़ज़ल,प्रस्तुति, नवीन भावों के साथ; साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2014 at 2:02pm

वाह वाह ..बहुत ख़ूब ज़नाब ज़ैफ़ साहब..
बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 10, 2014 at 7:49pm

आ. यमित भाई , छोती बह्र मे अच्छी गज़ल कही है , बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2014 at 6:50pm

जैफ भाई

बहुत अच्छी गजल है i इसके लिए आपको बधाई i

Comment by भुवन निस्तेज on July 10, 2014 at 6:10pm

मैंने तो उल्फ़त करी थी,
पर इबादत हो गयी है।

क्या बात है आदरणीय, बधाई हो...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 10:33am

बहुत बढ़िया जनाब ज़ैफ़ साहब बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

ajay sharma shared a profile on Facebook
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service